QUOTES ON #आसरा

#आसरा quotes

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13 JAN 2020 AT 21:41

पकड़

मृत्यु शैया पर लेटी अम्मा की सांसें अपने पुत्र सुरेश के लिए अटकी हुई थीं। रह रह कर सुरेश आया... सुरेश आया... बुदबुदाती और सो जातीं। सभी इकट्ठे हो चुके थे। सुरेश की प्रतीक्षा थी। सुरेश ने बरसों पहले घर अलग कर लिया था। अम्मा की किसी बात से उसकी पत्नी आहत हो गई थी।

बड़े दामाद ने सुरेश के घर फोन लगाया था। सुरेश की पत्नी ने फोन उठाया था। उसके तीस साल पुराने ज़ख़्म अचानक हरे हो गए। उसने साफ कह दिया, 'हमें कोई मतलब नहीं, प्लीज डोंट डिस्टर्ब। आइंदा फोन मत कीजिएगा ।'

दस घण्टे से ज्यादा हो गए थे, सुरेश नहीं पहुंचा। मौके की नज़ाकत देखकर दामाद ने मोहल्ले के एक अजनबी को अम्मा के सामने खड़ा कर दिया और कहा, 'अम्मा, देखिए, सुरेश आ गया।'
अम्मा ने अचेतावस्था में सुरेश की कलाई पकड़ ली और बुदबुदाने लगी,
'सुरेश, तू आ गया...तू आ गया।'

कलाई का स्पर्श होते ही अम्मा की पकड़ ढीली हो गई
और उनकी अंतिम सांस निकल गई।

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अज़ीज़ मानते गए हम,
हर दफा फ़रेब निकले।
वक्त की आसरा में थे,
गमज़दा हर एक निकले।।

और आये थे कुछ लोग,
सिर्फ मुझे आईना दिखाने।
वो सब पागल थे 'धर्मेंद्र'
हम हर दफा सिर्फ नेक निकले।।

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21 APR 2021 AT 8:04

हे राम तेरी संतान हैं हम
तेरी दया का ही आधार है अब,
तू दया करे तो तर जाएं
वरना तेरे बिन बेकार है सब।

श्वास भी तू है,आस भी तू
सबके मन का विश्वास भी तू,
तू है जग का पालनकर्त्ता
आया संकट हम लाचार हैं सब।

सुख में भी तू, दुख में भी तू
सब जीवों के कल्याण में तू,
हे जगतपिता ,तू है महान
तेरे आगे रज-कण मात्र हैं हम।

निर्माता तू ,विनाशक भी तू
अच्छे बुरे का ज्ञान भी तू,
गर बुरे कर्म करें रघुनंदन
तेरी क्षमा के भी हकदार हैं हम।
.......... निशि..🙏🙏


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23 OCT 2018 AT 20:32

कर्म फल का सेतु
प्रारब्ध बना हेतु
प्रश्न वाचक चिन्ह
के घेरे में मन
कभी आस्तिक
तो कभी नास्तिक
ऊपर वाला तटस्थ
परिणाम निकटस्थ
परिस्थितियाँ नचाती
कठपुतलियाँ बनाती
कभी बन यमराज
कभी बन धर्मराज
जीवन पर्यन्त थर्राती
जाड़े सा कँपकँपाती
और हम कपोत से
डरे, सहमे मौत से...
...ब्रजेश



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11 JAN 2020 AT 23:24

बछड़ा
(पूरी कहानी अनुशीर्षक में)

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2 DEC 2020 AT 21:38

काश नन्ही हथेलियों की
लकीरें बन जाऊं,
या ख़ुदा!
इस जिंदगी मे कुछ ऐसा कर पाऊँ|

कुछ सपनें उन मायूस,
ख़ामोश आँखों मे सजा पाऊँ,
या परवरदिगार!
उनके लिए टूटता सितारा बन जाऊँ|

ना भूख रहे,ना फ़ैले
नन्हें हाथ किसी के सामने,
या मौला !
इतनी बरक़त दे उन हाथों मे
कलम दे पाऊँ|

कितने की ख़्वाब
रोज़ जख़्मी होते उनके,
या मेरे मालिक !
उनके जख्मों का हरमह हो जाऊँ|

उजाड़े है आशियाने,
जिन नन्ही रूहों के तक़दीर ने ,
या रहीम!
इतना रहम कर,उनकी
जिंदगी मै छत बन जाऊँ|

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28 APR 2019 AT 16:53

वास्ता कुछ तो रखती है
#धूप" छांव की बस्तियों से
गुजरते वक्त दरीचों से
झांकते देखा
है।
हसरतें खामोश रहीं बेश़क
आंखों में

तैरती नमी
का
ठहरा सा असर
देखा
है।
प्रीति

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24 APR 2019 AT 1:55

मोहब्बत ने बड़ा बेआबरू कर दिल से निकाला है।
बड़े ही मुश्किल से हमने इस दिल को संभाला है।
सोचते है अब किसी का हम आसरा बन जाए।
शायद इसी बहाने हमें भी कोई आसरा मिल जाए।

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3 MAR 2019 AT 10:54

इक ठहराव की आस में,आसरे अक्सर बदलते रहते हैं 'हम'
अब जो 'तुम' ठहर जाओ, तो ज़रा ज़्यादा देर ठहरेंगे 'हम' भी !

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3 DEC 2019 AT 9:44

कलेजा का टुकड़ा था किसीका
अब उसे मोमबत्तियों में आसरा मिल रहा है,
एक रोज़ लगा हैवानियत का ग्रहण
उसको इस क़दर मिटा गया।

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