सिर्फ़ आराम।
मेरी लिखावट सोच के कोरे कागज़ पर कोरी है।
स्याही मन के कलम की, आज बिखरना नहीं चाहती।
बोझिल आँखे देखना चाहती है नींद के बाद का नज़ारा।
मजबूरी के साथ, थकान में डूब कर जगना नहीं चाहती।
ये उंगलियाँ हाथों की, बेजान हो जाना चाहती है।
आज कलम को थामने की, हिम्मत जुटाना नहीं चाहती।
ये थकान से टूटा बदन आज सिर्फ़ आराम चाहता है
कोई काम नहीं, कोई सोच नहीं। सिर्फ़ आराम।
सिर्फ़ आराम। (गीतिका चलाल)-
दूसरों की छोड़ ज़रा ख़ुद का मुआयना कर लो
दूसरों की छोड़ अपनी ज़िद का सामना कर लो
ज़िन्दगी तो बहुत से अक़्स दिखायेगी इक दिन
दूसरों की छोड़ अपनी हद तक आइना कर लो
आंधी जब आती है तो सब उड़ जाया करता है
दूसरों की छोड़ अपनी अहद की कामना कर लो
दिल जीतने का हुनर सबके पास होता है लोगों
अपनी मुस्कान से मुट्ठी में सारा ज़माना कर लो
दूसरों की भलाई के लिए देखा करो ख़्वाब अब
अपने ख़्वाबों में अब रात का अफ़साना कर लो
आराम से सब हो जाएगा जल्दी न करना कभी
कर्म कर अपने मन में मंज़िलों को पाना कर लो
ज़िन्दगी ज़िन्दा-दिली का नाम है यहाँ "आरिफ़"
सबको परख सको बुलन्द अपना पैमाना कर लो
जो किसी का ना हुआ वो "कोरा काग़ज़" होता है
ज़िन्दगी में डूबकर अपने नाम मयखाना कर लो-
ज़िंदगी बता, इक पल न क्यों आराम है
जीते खाक है, गुज़ारते सुबोह - श्याम है
सोचता हूँ,उम्र बसर हो किसी भी सूरत
बिताना अब तो पहर भी, हुआ हराम है
रौंद कर मुझको भीड़ निकली है, आगे
बेमन चल रहा हूँ, जहाँ उनके निशान है
सकूँ,तसल्ली, इत्मीनान, मिला ही नही
जाने क्यों हर कोई, इस कदर परेशांन है
बेवज़ह, बेमायने कब तक जियें, 'राज',
खुशी,ग़म,चाह भी नही अजब मुक़ाम है-
मोहब्बत है मुझे ये बात आम कर लो
आओ मेरी बाहों में आराम कर लो
तुमसे बिछड़कर जी नहीं पाऊँगा मैं
तुम मुझे अपना सुबह-शाम कर लो
तुम बस रूठना और मैं मनाऊँगा तुम्हें
अपने होंठों को इश़्क का जाम कर लो
तुम्हारी आगोश़ में बैठकर सुकून मिला
ज़रा मुझे अपना तुम अब गुलाम कर लो
मिलते-बिछड़ते हो, ज़िन्दगी कोई खेल नहीं
खुश़ी ज़िन्दगी को ज़रा अपना नाम कर लो
तुम्हारे ख़्वाब बहुत हसीन होते हैं "आरिफ़"
ज़रा अपने चेहरे को तुम ग़ुलफाम कर लो
"कोरे काग़ज़" भर लो शिकायतों से मेरी
ज़्यादा नहीं बस यही इक काम कर लो-
रूठ बैठी है मेरी खामोशी आज मुझसे,
कहा मुस्कुराओ, मुझे भी कुछ आराम चाहिए !-
Hum to "Shayar" hai,
Husn aur Mohabbat ki batein likh dete hai.
Chand jab falak pe hota hai.............
Apne "chand" ko dekhkar,
Phir unse mohabbat kar lete hai.-
जूगनूओं के हाथों पयाम़ भेजा है ।
खत में आखिरी सलाम भेजा है ।
बड़ा बेचैन सा था, दिल कुछ दिनों से ।
उनकी नामंजूरी ने आराम भेजा है ।
जूगनूओं के हाथों पयाम़ भेजा है ।।
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वो बुरा है, तुम भले हो क्या समझे
वो आग है, तुम जले हो क्या समझे
लड़कियों पर ज़ुल्म तो सब ही करते हैं
वो ज़ुल्मी, तुम दूध के धुले हो क्या समझे
किसी को भी बेवजह मार दिया जाता है
वो यतीम, तुम नाज़ों से पले हो क्या समझे
बातों से ही लूटने का ज़माना हो गया अब
वो चोर, तुम कटते हुए गले हो क्या समझे
इज्ज़त का तो बस नाम ही रह गया है
वो अमीर, तुम सिर्फ़ नल्ले हो क्या समझे
हर किसी का रहना मुश्किल कर दिया है
वो शहर, तुम तो अब जिले हो क्या समझे
चैन, सुकून, खुश़ी, क्या है ये आराम लोगों
वो डरे, तुम उसपर सिर्फ़ फूले क्या समझे
ग़रीबी और लाचारी ने खा लिया "आरिफ़"
वो फ़टा, तुम हमेश़ा से सिले हो क्या समझे
पैसों को "कोरा काग़ज़" समझकर छीन लिया
वो भागा, तुम तो जगह से हिले हो क्या समझे-
यूँ भी तो आराम बहुत है
आलसियों में नाम बहुत है
दिन भर खाली बैठे रहते
कहते सबसे काम बहुत है-
उठते है रोज सुबह इस उम्मीद में
कि मेरे लियें उनका कोई पे गाम होगा
अब कौन कहें तुम्हें राही
इस दर्द-ए-बिसात में कभी न आराम होगा।
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