niranjan verma   (राही)
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Joined 29 April 2019


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16 JUL 2022 AT 23:33

तेरे बिना, तेरे बिना
आगे मेरी राह कैसी
हाथों में जो तेरे हाथ नहीं

बिन बोले, बिन बोले
दिल से मेरे, तेरी
आंखें कहती रहीं

दुरियाँ हैं लम्हातों में पर
फिर से हम मिलेगें
तेरी यादें समेटे, हम चलेंगे

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16 JUL 2022 AT 13:33

जीवनयापन वाली नौकरी
खा जाती हैं सपनों को
कुछ नया करने की क्षमता को

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18 JUN 2022 AT 7:19

इश्क़ दुबारा हुआ हैं किसी से
पर वो जुनून गया
टुट के चाहनें की हद तक
हश्र मालूम हमें, सो में ठहर गया

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17 MAY 2022 AT 23:19

इक दफा कोशिश की थी बांधने की हमनें
इक दफा हमनें गवायाँ भी बहुत हैं

इक दफा गिराया था सम्मान किसी का
इक दफा खुद को हराया भी बहुत हैं

अब वापस दोहराना नहीं है हमें
जो मिला खुबसूरत इंसा, गवाना नहीं हैं हमें

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17 MAY 2022 AT 22:59

तुम्हारी value नहीं हैं

ये बात मेरे दिल
मेरी आँखों से पुछो
पानी का
जैसे रेत में भटके
प्यासे से पुछो
पुछो पतगं से उसकी डोर का
तपन धरती से पुछो
बादल की घन-घौर का
पुछो सांसों से हवा की क्या value
पुछो कलम से स्याही की क्या value
जबाब मिले तो बताना मुझें
मेरे ज्जबातो की क्या value.

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3 APR 2022 AT 22:33

खिला था दोपहर तक को इक शहर
अब तल्ख़ खामोशी सी छायी हैं
वीरानी गलियां फिर महसूस हुई
फिर आंखें भर आयी हैं
दिल तो है कि हाल पूछे उनका...
आग तो दिमाग ने लगाई हैं

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13 MAR 2022 AT 10:50

कौनसी इबादतों दुआओं का ये असर हैं
जो वक्त़ की राहों में हम, हमसफ़र हैं

सुकुन-ए-जहाँ सब मिल जाते हमें
जब माथे पर मेरे, ठहरें तेरे लब हैं

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11 JAN 2022 AT 20:30

तेरी अदा पे मरते हैं
इश्क़ तुम्हीं से करतें हैं
सांसें मेरी हो तेरे बगैर
इस ख्याल से डरते हैं
चांदनी भी मांगे साथ तेरा
जन्नत से हम मुकरते हैं
इश्क़ तुम्हीं से करते हैं

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30 DEC 2021 AT 23:10

यादें,सर्द हवा के झोंके सी
अन्दर तक सिहरन ले आती हैं
घिर के तुम्हारी बांहों में
सुकून अंगीठी सा मैं पाता हूँ

जो हूँ मैं कभी उदास बैठा
तुम आकर चिड़ियों सी चहचाती हो
फिर सुनती हो मुझे बडे़ आराम से
मेरे दर्द को अपना कर जाती हो


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25 DEC 2021 AT 2:25

इक शक्स मेरे दिल का ख्याल बहुत करता हैं
और ये बेवकूफ बिति बातों पर मलाल करता हैं

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