लेखक मेरे वो हैं आदर्श !
जिनकी कलमकारी के सामने,
आज भी सभी पड़ जाते हैं मंद!
जिनकी लेखनी ने कर दिया था,
अंग्रेजों की भी बोलती बंद!
ऐसे थे हमारे सर्वप्रिय,
आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद
के ग्रंथकार मुंशी प्रेमचंद!!!-
कुछ लोग व्हाटसैप पर आए आदर्शवादी
मैसेजेस्.." जैसे माँ बाप को खुश रखो,
अच्छे इमानदार बनो ,या चाइना का माल
मत खरीदो.." दूसरों को ऐसे फॉरवर्ड
करते हैं..जैसे भाई..कोई ड्रेस या डिश है
हमें तो जमीं नहीं ..तुम ट्राई करके देख लो
शायद तुम्हें ठीक लगे।
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जब चलती है आदर्शवाद की बातें,
यह देख, यर्थाथ मुस्कुराता है।
समय आगे निकलते ही,
आदर्श सिर्फ कल्पनाओं में रह जाता है।
और यर्थाथ जीत जाता है।
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कुछ न पा सकोगे तुम,
इस झूठे अभिमान से।
त्याग भावना होती है क्या,
सीखो तुम श्रीराम से।।-
युवाओं का आदर्शवादी न होना उन्हें बिना दिल के दिखाता है
और बूढ़े में आदर्शवाद का होना उन्हें बिना दिमाग का दिखाता है।-
गुनाह तुमने भी किया था
गुनाह हमने भी किया था
तुम तो किस्मत से बच गए
और हम अकेले फँस गए!
यह सवाल मुझको सताता है
कोई तिकड़म से बच जाता है
अब भोला - भाला बनना नहीं
नहीं तो समझो साँप डँस गए!
जो समर्थ है दुनिया उसी की तय
अब आदर्शवाद है दिखावे की शय
जो दिखा रहे खोखली सहानुभूति
वो मन हीं मन तुम पर हँस गए!
----राजीव नयन
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'ऐसा होना चाहिए' यह आदर्श है और 'ऐसा है' यह यथार्थ है। समय के साथ 'आदर्श' बदलते रहते हैं परंतु 'यथार्थ' वही रहता है जो वो होता है।
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युवाओं का आदर्शवादी न होना इस युग में
आदर्श व्यक्तित्वों की कमी दर्शाता है
बुजुर्गों में आदर्शवाद यह दर्शाता है
कि उनके ज़माने में जो आदर्श व्यक्तित्त्व थे
उनका असर उनका जुनून अभी तक नहीं उतरा
ऐसे विराट व्यक्तित्व के धनी थे उनके जो आदर्श थे-
"यथार्थवाद"
और
"आदर्शवाद"
के बीच टकराव का
एक ही निदान
"धन्यवाद।।"
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