कहने को तो जिंदगी मेरी
दिख रही गुलजार है,
मगर असल में तो
तन्हाईयों की छाई बहार है!!
सिमट कर रह गयी हैं
अधूरी ख्वायिशें मेरी ऐसे,
जैसे कुएँ के मेंढक के लिए
कुआँ ही उसका संसार है!!-
किसी कोने में...
लगा रहता है दिल,
उससे बिछड़ कर रोने में...
मिलने में लग जाते हैं सालों,
देर नहीं लगती उसको खोने में....-
दो वर्षों बाद वह...
शुभ घड़ी फिर से आएगी !
छोटे बच्चों के आने से...
पाठशालाओं में खुशियाँ छाएगी !!— % &-
YQ पर पहला बंदा पाया है,
जिसने यहां भी खटाया है..!
मैडम जी बोल-बोल कर के,
बेगारी में पोस्ट जाँच कराया है!
इसकी लेखनी में है कुछ खास,
तभी तो मैंने भैयवा बनाया है!!-
लेखक मेरे वो हैं आदर्श !
जिनकी कलमकारी के सामने,
आज भी सभी पड़ जाते हैं मंद!
जिनकी लेखनी ने कर दिया था,
अंग्रेजों की भी बोलती बंद!
ऐसे थे हमारे सर्वप्रिय,
आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद
के ग्रंथकार मुंशी प्रेमचंद!!!-
यहां पत्थर होकर भी तो चैन नहीं है साहेब,
क्योंकि लोग देर नहीं करते हथौड़ा चलाने में!
इस पर भी गर सब के लिए मोम ही बन जाए तो,
दुनिया को देर लगेगी क्या हमें पिघला जलाने में?-
जो सुधर गये कहेगी वो, तुम सदा उसे स्वीकार हो,
गर नहीं सुधरे तो शायद दुनिया से बहिष्कार कर दे!!-
सपने पूरे होने लगे थे
और फिर
"कोरोना महाराज ने
देश में डाला डेरा
फिर एक साल और
टल गया सपना मेरा"-