प्रकृति की यह नीरवता.... मेरे अंतर्मन में .... सहस्त्रों कंटको की भाँतिं चुभ रही हैं!! और मैं, मैं खामोश बस हृदयविदारक इस पीड़ा को चेहरे पर खिलखिलाहट ले जानें क्यों.... जीए जा रही हूँ ??
सुनो... खामोश हूँ, कैसे बताऊँ अपने हालात दिल करता है तो छिप कर आज भी रो लेती हूँ मैं पूरी रात देखने को तड़प जाती है आँखें आत्मा लगती है शोर करने कि शायद, कर लो ज़रा अब भी मुझसे बात नहीं उठते हैं लब शिकायत में है बढ़ने लगी फिर बेचैनियों की तादात हाँ, बस यही है अब मेरे हालात ।
रोड के किनारे मोटर के पास टूटे बटन की कमीज़ पहन सामने खड़े थे मेरे वो दो अधनंगे बच्चे टकटकी लगाए आश लगाए चाहत दिल में दो रुपए की मटमैले बदन लिए वो दो मासुम बच्चे रुपए की जगह कुछ खाने की बात सुनकर बड़े ही रोब से गन्ने की शरबत की ओर ललचाई नज़रों से इशारा करते वो प्यारे-प्यारे दो बच्चे।