बबीता कुमारी   (🌱बबीता कुमारी🌿)
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Joined 4 May 2020


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Joined 4 May 2020

कहने को तो जिंदगी मेरी
दिख रही गुलजार है,
मगर असल में तो
तन्हाईयों की छाई बहार है!!

सिमट कर रह गयी हैं
अधूरी ख्वायिशें मेरी ऐसे,
जैसे कुएँ के मेंढक के लिए
कुआँ ही उसका संसार है!!

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वो जितना हमें क्रूर कहते रहें...
हम उतना उनसे दूर होते गए....

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किसी कोने में...
लगा रहता है दिल,
उससे बिछड़ कर रोने में...
मिलने में लग जाते हैं सालों,
देर नहीं लगती उसको खोने में....

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प्रत्येक रिश्ते की दौड़.....
पैसे पर आकर खत्म हो जाती है......

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दो वर्षों बाद वह...
शुभ घड़ी फिर से आएगी !
छोटे बच्चों के आने से...
पाठशालाओं में खुशियाँ छाएगी !!— % &

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जो सुधर गये कहेगी वो, तुम सदा उसे स्वीकार हो,
गर नहीं सुधरे तो शायद दुनिया से बहिष्कार कर दे!!

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सपने पूरे होने लगे थे
और फिर
"कोरोना महाराज ने
देश में डाला डेरा
फिर एक साल और
टल गया सपना मेरा"

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प्रकृति की यह नीरवता....
मेरे अंतर्मन में ....
सहस्त्रों कंटको की भाँतिं चुभ रही हैं!!
और मैं,
मैं खामोश बस हृदयविदारक इस पीड़ा को
चेहरे पर खिलखिलाहट ले
जानें क्यों....
जीए जा रही हूँ ??

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सुनो...
खामोश हूँ, कैसे बताऊँ अपने हालात
दिल करता है तो छिप कर
आज भी रो लेती हूँ मैं पूरी रात
देखने को तड़प जाती है आँखें
आत्मा लगती है शोर करने कि
शायद,
कर लो ज़रा अब भी मुझसे बात
नहीं उठते हैं लब शिकायत में
है बढ़ने लगी फिर बेचैनियों की तादात
हाँ, बस यही है अब मेरे हालात ।

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दो बच्चे

रोड के किनारे
मोटर के पास
टूटे बटन की कमीज़ पहन
सामने खड़े थे मेरे
वो दो अधनंगे बच्चे
टकटकी लगाए
आश लगाए
चाहत दिल में दो रुपए की
मटमैले बदन लिए
वो दो मासुम बच्चे
रुपए की जगह
कुछ खाने की बात सुनकर
बड़े ही रोब से
गन्ने की शरबत की ओर
ललचाई नज़रों से इशारा करते
वो प्यारे-प्यारे दो बच्चे।

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