QUOTES ON #अष्टावक्र

#अष्टावक्र quotes

Trending | Latest
19 APR 2019 AT 20:28

प्रिय ठलुआ-वृंद!

मनुष्‍य-शरीर आलस्‍य के लिए ही बना है। यदि ऐसा न होता, तो मानव-शिशु भी जन्‍म से मृग-शावक की भांति छलांगें मारने लगता, किंतु प्रकृति की शिक्षा को कौन मानता है। 

निद्रा का सुख समाधि-सुख से अधिक है, किंतु लोग उस सुख को अनुभूत करने में बाधा डाला करते हैं। कहते हैं कि सवेरे उठा करो, क्‍योंकि चिडियां और जानवर सवेरे उठते हैं; किंतु यह नहीं जानते कि वे तो जानवर हैं और हम मनुष्‍य हैं। क्‍या हमारी इतनी भी विशेषता नहीं कि सुख की नींद सो सकें! कहां शय्या का स्‍वर्गीय सुख और कहां बाहर की धूप और हवा का असह्य कष्‍ट!

-


4 FEB 2018 AT 0:27

मेरे कद को देखकर उन्हें हँसी आ गयी थी
नाक-भौं सिकोड़ लिया लम्बी नाक देखकर
चेहरे पर जो नजर पड़ी तो अपना चेहरा घुमा लिया....

चमड़ी तक ही उनकी दृष्टि सीमित थी
आत्मा की सुंदरता तक कहाँ उनकी पहुँच थी

-


1 OCT 2020 AT 22:37

विरक्त पुरुष विषयों में द्वेष करता है
और रागी पुरुष विषयों के लिए मचलता है,
किन्तु स्थिर चित्त, ब्रह्म ज्ञानी पुरुष ना तो विरक्त होता है
ना ही रागी।
त्याज्य एवम् ग्राह्य का यह भाव ही संसार रूपी इस वृक्ष का अंकुर है। तुम्हें ना कुछ त्यागने की आवश्यकता और ना ही गृहण करने की।आवश्यकता है तो मात्र अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानने की।

-


14 JUN 2021 AT 19:54

अष्टावक्र कहते हे,सत्य को केवल वही परम
आलसी व्यक्ति पा सकेगा जिसके लिए, आंखो
की पलक झपकाना भी झंझट का काम हो

कल में खुद का मू धोके थक गया, ओर आलस का
तो पूछो ही मत, अब आप हिसाब लगा लो

-


15 OCT 2019 AT 13:33

। सूत्र।
मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान्तर विषवत्यज।
क्षमार्ज्जवदयातोषं सत्यं पीयूषवद् भज।।
। अष्टावक्र महागीता ।
सुत्र का अर्थ -- आत्मबोध का पात्र वही होता है जो निरासक्त हो। निरासक्तता या वैराग्य के अभाव में आत्मबोध होना कठिन है। अतः राजा जनक को अष्टावक्र वैराग्य का स्वरुप बताते हुए कहते हैं कि प्रिय! यदि तू मुक्ति का इच्छुक है तो सांसारिक विषयों का विष की भांति त्याग कर और क्षमा, सहजता, दया, संतोष व सत्य का अमृतवत् पान कर। अर्थात विषयों को त्यागकर सद्गुणों को जीवन में अपना।

-


17 FEB 2021 AT 18:53



कुत्रापि न जिहासास्ति नाशो वापि न कुत्रचित्।

आत्मारामस्य धीरस्य शीतलाच्छतरात्मनः॥१८- २३॥



जिसका अंतर्मन शीतल और स्वच्छ है, जो आत्मा में ही रमण करता है, उस धीर पुरुष की न तो किसी त्याग की इच्छा होती है और न कुछ पाने की आशा ॥२३॥
-अष्टावक्र गीता १८प्र.

-


18 OCT 2019 AT 12:33

।सूत्र।
यदि देहं पृथक्कृत्य चित्ति विश्राम्य तिष्ठसि।
अधुनैव सुखी शांतः बंधमुक्तो भविष्यसि।।
।अष्टावक्र महागीता।

सूत्र का अर्थ : अष्टावक्र जनक से कहते हैं कि यदि तू स्वयं को शरीर से पृथक् करके चैतन्य में स्थित है तो अभी सुखी, शांत व बंधनमुक्त हो जाएगा।

-


15 APR 2018 AT 1:26

तीर थे,तेरे इश्क में कमान हो गये हैं
ये कहती है आप कैसे इंसान हो गये हैं

-