रात की बांह में मैं जीता रहा
सोच यही जीवन चलता रहा ।।
अंधियारा सुबह बदलता रहा।।
रात फिर चुप चाप ढलता रहा।।
सोच यही जीवन चलता रहा।।
मै मुसाफिर बांवरा सोचता रहा।
फिर फिर रहा सफर अधूरा यहां।।
स्वप्न सी अधियारी निशा अज्ञान की
मै इसी में हर रोज जीता रहा मरता रहा।।
यूं रात फिर चुप चाप ढलता रहा।।
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मैं
तब तक
प्रतीक्षा करूंगी
तुम्हारे मिलन की
जब तक युग सारे बीत न जाए
मैं
तब तक ध्यान तेरा धरूंगी
जब तक धेय मेरा पूरा हो जाए
मै
गिरूं बन
मिट्टी तेरी धारा में सतरंगी होऊं
खिलूँ कली बन महक फूलों की
मै
प्रिय तेरा
बांवरा तुझमें तुझको खोजूं
युगों की प्यास बन सागर पाऊं
मै
प्रिय प्रीत
सांवरे प्रीतम तुम संग जोडूं
सांसों की हर माला तुम में हो पूर्ण
बांवरा हृदय
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मैं
तब तक
प्रतीक्षा करूंगी
तुम्हारे मिलन की
जब तक युग सारे बीत न जाए
मैं
तब तक ध्यान तेरा धरूंगी
जब तक धेय मेरा पूरा हो जाए
मै
गिरूं बन
मिट्टी तेरी धारा में सतरंगी होऊं
खिलूँ कली बन महक फूलों की
मै
प्रिय तेरा
बांवरा तुझमें तुझको खोजूं
युगों की प्यास बन सागर पाऊं
मै
प्रिय प्रीत
सांवरे प्रीतम तुम संग जोडूं
सांसों की हर माला तुम में हो पूर्ण
बांवरा हृदय
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सूरज ढलने को अब ।
कुछ राहें निकलने को अब।।
कुछ बंधन झूठे से अब ।
कुछ उलझन टूटे से अब।।
कुछ टेढ़ी मेढी थी पग डंडी।
शौर्य धैर्य के दो पहियों में,
सत्य ,के दृढ़ ध्वज फहराएं।।
चंवर साधना का ले बढ़ते राहें।
जीवन बगिया में सौरभ महकाएं।।
हो छद्म सांझ की पहले,
धर निर्मल चादर जीवन की ,
घर अपने को जाऐं........
"बांवरा मन हर्षाये"
#"बांवरा" हृदय — % &— % &-
विरह तो बस तुम्हारा है दिया कान्हा....
बांवरे को कहां सुधि है कुछ खोए
और पाना खोना तो कुछ न था!!
न कुछ होने को जीवन वारा था...
सब कुछ कितना प्यारा प्यारा था
कुछ कर्मों के बनते बिगड़ते राहें
कुछ बही आशाओं की नदियां ...
जितना भी बही बांटा बीहड़ों को
कहते रहे वे चुप चाप बहे नदियां!!
सहते रहे बांवरा हृदय बस रो दिया!!!
विरह तो बस .......
#बांवरा" हृदय"
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जीवन के केनवास में उभरते हर पल
सांसों का सरगम लिए प्रफुल्लित मन
और एक अनजान बियावान सा गंतव्य
बाँवरा हृदय चुप चाप झरते परिजात सा
मौन अदृश्य मीत की खोज में ना खोज हुवा
अब क्या सोचें अब क्या बोले मन अबोल सखा
जीत देखूं बस तेरे सुन्दर मधुर बोल सखा
मैं जोगन बन तेरी
प्रतीक्षा सतत,
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मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः सा उच्यते॥
जो मान और अपमान में सम है, मित्र और वैरी के पक्ष में भी सम है एवं सम्पूर्ण आरम्भों में कर्तापन के अभिमान से रहित है, वह पुरुष गुणातीत कहा जाता है।।25।।
अध्याय 14
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दान वहीं दे जहां उसकी उपयोगिता हो।
जिस प्रकार पेट भरे हुए व्यक्ति को भोजन कराने का
कोई लाभ नही।
जिस प्रकार दोपहर में दिया जलाने से कोई लाभ नही
अपितु दीपक की सत्ता को कम ही करना होता है।
उसी प्रकार दान पुण्य प्राप्त करने या यश मिले इस लोभ
से नही करना चाहिए... बल्कि उसकी आवश्यकता ज्यादा कहां है।
यह देख के करें पुण्य और यश जगती के मनुष्य के हाथ नही ।
वे सब तो वे अदृश्य सत्ता जनता है जो सम्पूर्ण सृष्टि में
विराजमान है।।
#बांवरा" हृदय"-
जिंदगी इन्तहां बन जाती है
हर तरफ प्रश्न छोड़ जाती है
कुछ मिले और अनमिले राहें
बयाँ यूँ कर सके कौन यहां है
चलना चलते रहना और क्या है
बातों -बातों का नया काफिला है
अविरल गंग धार सी विशुद्ध प्रेम
प्रवाह सतत बहते रहना बांवरा मन
(बांवरा हृदय)
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मन मकरंद घन बन छाया सांवरा
विकल स्वाति बिन चातक बांवरा
बूंद बूंद वारि वर्षे मन जन्मों का,प्यासा।
पाने तृप्ति लिए सघन तुम से आशा।।
मरू भूमी का प्यास बांवरा।
तुम अम्बर के अमृतधारा।।
हूं मै तो नन्हा सा रज कण तारा।
तुम हो विस्तार सृष्टि सम्यक सारा।।
यूं तो तुम से लगी लग्न दिन रैन ।
तुम ही जीवन तुम ही प्राण हृदय के चैन।।
सांवरे जीवन तुमअवलम्ब उद्दीपन तुम।
बांवरे हृदय के तुम पूर्ण विश्राम।।।
#बाँवरा "हृदय"
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