एक दिन चिड़िया उड़ गई
जब अपनो ने ठुकरा दिया
गैरो ने अपना लिया.....
जब ज़िन्दगी का हर दरवाज़ा बन्द
हो गया तब चिड़िया उड़ गई.
बड़ी चाहत थी उसमें आसमान को छूने की
बहुत उम्मीदें थी अपनी कोशिशो पर
उसकी रोते हुए सिसकती हुई आहें
किसी ने ना सुनी.....
तब चिड़िया उड़ गई........
घर मानो जेल लगने लगा था
रोज तिल तिल मरती थी वो
देख कर अपने सपनो को रौंदता
सह न पाई ये सब.......
मौका देख पिंजरे का दरवाजा खोल वो उड़ गई
एक दिन चिड़िया उड़ ही गई..........
-
अपनों से ज्यादा तो
अब हमे पराये अच्छे
लगने लगे हैं...
ख़ुशी ना सही तो कम
से कम ये बेवजह दुःख
तो नहीं दिया करते...-
कौन यहां किसके लिए जीता है
हर कोई बस मतलब तक ही जख्मी सीता है
अपनी परछाई भी छोड़ देती है
अंधेरों का साथ पाकर
कोई नहीं, पलट कर देखता
शोहरत की ऊंचाई तक जाकर-
Dard Humesha
"Apne"
Hi Dete Hai,
Warna Gairo
Ko Kya Pata Ki,
Takleef Kis
Baat Se Hai...-
बस ये "शब्द" ही
अपना रह गया है।
इस "शब्द" का "मतलब"
ही आव
"बेमतलब" हो गए है।-
मुझे डर से नही डर की वजह से डर लगता है
अंधेरो से ज्यादा इन उजालो से डर लगता है
ख़ामोशी से ज्यादा इस शोर से डर लगता है
सच कहूं परायो से ज्यादा तो अपनो से ही डर लगता है-
पराये लोग ही कुछ ऐसा, कर जाते है
हम उन्हें, अपना बनाने में लगे रहते है,
वो हमें पराया कर, इस तरह बिखेर जाते है !!!
हम ना किसी के हो सकते है,
और ना किसी को अपना बना सकते है !!
परायो में ही इतनी हिम्मत होती है,
अपने तो बिखरे हुए को संभालने में लगे रहते है !!-
हमे तो अपनों ने लुटा
परायो में कहा दम था
हम भी चुप रहे
क्यू की साफ हमारा मन था
जले पे नमक डाल ते रहे
फिर भी सह लिया
हम भी कहा किसी से कम थे
मुंह पे मुस्कान ले कर कोने में रो लिया
कुछ अपने हाथ में नमक ले कर चलते है
कुछ अपने हाथ में मलम के कर चलते है
-
पराये ही बुरे वक्त मे
हमसाये बन जाते हैं
अपने तो बस बर्बादी का
तमाशा देखने आते हैं-
मेरे अपने ही गलत समझते हैं मुझे
उनका बर्ताव बताता हैं
वक्त और हालात के बीच,बोलो
मेरा कसूर कहाँ आता हैं ?
चुप हूँ इस तमीजदार जुबां के खातिर
वरना,बोलना तो हमें भी आता हैं........-