कुछ नया जानने के लिए
जरा चलना जरूरी है
गिर कर संभलने के लिए
थोड़ा टूटना जरूरी है
लोगो को पहचानने के लिए-
ना जाने कितनी दफा लिख कर मिटाया उस नाम को
जिसे जहन से अब तक न मिटा सके-
शामिल हैं ना होकर भी
कभी रातों का ख्वाब बनकर
तो कभी दिन का सुकून बनकर
कभी धूप में छाव बनकर
तो कभी अंधेरे में रौशनी बनकर-
ये लोग क्यूं घुट घुट कर जीते हैं
जो है मन में उसे क्यूं नहीं खुल कर कहते हैं
क्यूं जिंदा होकर भी मुर्दों सा रहते हैं
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एक दोस्त है जो जाने-अनजाने ही सही पर उसकी याद दिला रहा
वो जो कभी बेतुके jokes सुनाया करता था
बिन सर पैर की बातें किया करता था
ये आज बेतुकी शायरियां सुनाया करता हैं
और हां अपनी रामायण महाभारत भी गाया करता हैं
जाने-अनजाने ही सही पर ये उसकी याद दिलाया करता हैं-
हल्की हल्की धूप फिर उसमें ये बारिश
क्या कमाल कर रही है
उस पर यह सतरंगी इंद्रधनुष और मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू
बेकरार कर रही है
कुछ इस तरह देख आज फिर तेरी याद दिला रही है-
अब तू बेवजह वजह ना पुछ इस बेरुखी की
कहीं ऐसा ना हो आईने से रुबरु ही ना हो पाए तू-
एक ख्वाब था सच कहूँ तो वो ख्वाब नही हक़ था
जिसे किसी के कर्म तो किसी की सोच ने छिन लिया-