ये हम कुछ लोग हैं बाशिंदे हैं अंधेरों के
हमें रोशनी की आहट भी सरासर ख़ौफ देती है-
" इक रात ही है स्याह तेरी जुल्फों सी
औऱ ज़िन्दगी में अंधेरे ही कितने हैं,
अफ़सोस इक ही चाँद है अम्बर पे
तुझसे मिलते औऱ चहरे ही कितने हैं "-
कुछ काम कुछ ख़ुशनसीब लोगों के नाम होते है
पाप तो रोशनी में होते है अँधरे यूँही बदनाम होते है-
बेवजह अंधेरे से डरना लाज़िमी था मेरा,
इश्क़ हुआ वजह मिली उसी अंधेरे में सुकून की।-
ये अंधेरे है यहां उजाले के नहीं होते ,
ये ज़मानें वाले किसी के सहारे नहीं होते ।-
पहले से
पता था
कि प्रकाश
नियत समय
पर आयेगा ज़रूर...
अंधेरे हद से ज्यादा
जो बढ़ गये थे !!!
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अंधेरे तुझसे कैसा डर
जलाना मेरा फर्ज़ है
फितरत मेरी रोशनी
मेहनत की लौ मेरी
सचाई है ईमान की-
ये अमावस लंबी लगती हैं मुझे
दिल का एक कोना अंधेरे में डूबा रहता हैं
चाँद से हो तुम ...-
अंधेरे से डर नहीं लगता मुझे ये तो मेरा जोड़ीदार है
रात को जब मैं मिलता उससे, यही तो मेरा पहरेदार है।-