इकरार पे तू यूं शर्मायी थी, गालों पे गुलाबी रंगत आई थी,
देखकर तेरे चेहरे की रंगत, मुझको तो होली याद आई थी।
पहले सावन में हरी हरी चूड़ियों से जब तू कलाई सजाई थी,
देख के तेरे प्रेम की हरियाली मुझको तो होली याद आई थी!
जब ना हो पाती थी बातें तुझसे,तुम सुर्ख़ रंग से तमतमाई थी,
देखके तेरी आँखों की सुर्खी, मुझको तो होली याद आई थी।
मुझे खोने के डर से तू सहमी सी पीली पीली नज़र आई थी,
देख के तेरा वो रूप सुनहरा, मुझको तो होली याद आई थी।
जब जब तुम खिखिलाई थी, जैसे बारिश में बिजली कौंधी थी,
सफेद मोती से दंतपंक्ति चमक से, बरबस होली याद आई थी।
चुलबुली चिड़िया सी जब भी तूने आसमां में उड़ान लगाई थी,
देख के तेरा आसमानी आँचल मुझको तो होली याद आई थी।
जब कभी भी तू रूबरू थी,फलक पर इंद्रधनुषी छटा छाई थी,
"राज" की हुई सतरंगी जिंदगी, मुझको तो होली याद आई थी। _राज सोनी
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