जहर का प्याला इश्क़ है साला जिसने भी पिया अपने वक्त को है मारा ज़िन्दगी एक है मौका भी एक ही समझ लो यारा इश्क़ का मारा उठता नहीं है दूबारा प्रमाण कितने हैं नजरें जरा धुमाना बेरोजगारों की भीड़ में 90% है बेचारा स्वयं पर प्यार क्यों जगता नहीं तुम्हारा कमोबेस सबका यही हाल है आज का अंतिम विकल्प तुम्हारा इश्क़ में सुकून कहाँ? सुकून में इश्क़ कहाँ? समझना काम है तुम्हारा
जैसे लफ़्ज़ों से मिसरे, मिसरों से शेर, और शेरों से बनती ग़ज़ल, . . . . . . वैसे . . . . . . तुझसे मैं, हमसे ये ज़िन्दगी, और ज़िन्दगी में खुशियों का कमल!