ज़रा कच्ची-पक्की सी ,
रोटी भी ,
उनसे खाई नहीं जाती ,
और...
वो इक़
नादान सी लड़की
बचपनें में... इक़
उम्र गुजारना चाहती है ।-
नमक सी ज़िन्दगी कर सबने स्वाद अनुसार इस्तेमाल किया,
इंसान है न दिल मे भी दिमाग होने का अपना सबूत दिया..!-
जान की भी अपनी पहचान होती है,
बेकद्रों पर ही अक्सर कुर्बान होती है ।-
ज़िन्दगी बेहद खूबसूरत थी हमारी
बस लोगो ने स्वादानुसार इस्तेमाल किया
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नमक डालें तो अच्छा होता है
वरना खाने का स्वाद बिगड़ जाता है
घर में रखी हर चीज करीेने से
रखी अच्छी लगती है
न रखी हो तो घर का नक्शा बदल जाता है
मीठे बोल सभी को अच्छे लगते हैं
न बोलो तो बोली का पैमाना बदल जाता है-
....बाकी रिश्तों में हम बखूबी स्वादानुसार हैं..!
*नमक* से ही नाम हैं
*नमक* से ही बदनाम है।।
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किसी पकवान की तरह थे तुम मेरी ज़िंदगी में
वो मेरे ज़ख्मो पर नमक भी छिड़कते है स्वाद अनुसार
-मुसाफिर ए गुमनाम-
"नमक" की तरह हो गयी है "जिंदगी",,
लोग "स्वादानुसार" इस्तेमाल कर लेते हैं..!!
शशांक भारद्वाज...
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"अधूरे किस्से"
पाना ही कहाँ बस मकसद है
कभी खोने का मज़ा भी ज्यादा है
ये प्रीत है शतरंज का खेल नहीं,
यहां ना वज़ीर है कोई, ना कोई प्यादा है।
लाख चाहा तुझे ना याद करूं,
पर जुड़ा तुझसे कोई धागा है,
मुझको मुझमें ही जगह मिलती नहीं
अब तुझमें ही रहने का इरादा है।
एक परवाह बतानी पड़ती है,
रिश्तों का यही तगादा है
ना छू ही सकूं, ना पा ही सकूं
कुछ रिश्तों की यही मर्यादा है।
ना जाने कैसा प्यार है तुझसे
लगता है नमक ही ज्यादा है।-
कसर न छोड़ी किसी ने भी
जख्मों को कुरेदने की हमारे
जिसे मोका मिला जख्मों पे
हमारे अपने स्वादानुसार नमक
छिड़कता चला गाया।-