'निश्चित' है जो
सब पहले से
तो फिर मेरा क्या
और तुम्हारा क्या
'अस्तित्व' का सूरज
कब डूब जाए
मालूम नहीं...
खिड़कियां 'गिनती' है
तारो को
'वहम' की रात में अक्सर
डूबता है 'सूरज'
हिस्से के
बटवारें में...
जैसे हम
'बट' जाते है
'त्योहारों' में-
बहुत बातें करनी है ज़िन्दगी के काम काज में
हम इतने व्यस्त हो चुके थे कि
वक़्त ही हमसे अलग होता गया.....
जब मिलोगे फिर हम याद करेंगे उन पलों को...
जिन्हें याद करके आज भी हम उन पलों में खो जाते है
फिर तुम गले से लगाना मुझे जैसे पहली बार लगाया था
उस दिन बिन बादल बरसात हुई थी.....
पंक्षियों के चहचहाने की आवाज आने लगी.....
आसपास तितलियां ही तितलियां आ गई ...
सूरज केसरिया रंग का हो चुका था......
मानो हमारा मिलन कुदरत ने ही तय किया था.....
आज वो दुआ पूरी हुई जो हम दोनों ने मांगी थी....इतनी खुशी महसूस की आज हमने जैसे तीनो लोको ने मिलकर धरती लोक पर जश्न मनाया हो......
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चाँद संग विराम करो
ज़िंदगी के पल पल का
सलीक़े से एहतराम करो-
चंद्र बदन चपला सा चमके
सूरज नयन रिझाते
खो जाते उन्मुक्त हंसी में
छा जाते अंधेरों पर लाली-
कि सवेरा हो जाये
ज़िन्दगी रोशन हो जाए हर अंधेरा खो जाए
Apne Suraj ko jagao
ki savera ho jaaye
Zindagi roshan ho jaye
hr andhera kho jaaye-
वो तो बरसात सी आयी थी
हर बूंद में जिंदगी संग लायी थी
पर उसका जाना तो तय था,
कमबख्त गलती तो हमारी है
उसके आने से रोशनी क्या मिली
हम उसे सूरज की किरणे समझ बैठे।-
ऐ शम्स तेरी घूप से कोई गिला नहीं,
अपने ही रास्ते में कोई सायबाँ नहीं।
हम बेघरों को ख़्वाब भी आधे ही आते हैं,
दिखती तो है ज़मीन मगर आसमां नहीं।
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दूर कहीं क्षितिज पे सूरज ढल रहा है
यानी फिर किसी दरिया का दिल जल रहा है !!-
रोज़ उसके करीब जाकर उससे बिछड़ जाता हूँ
मैं वो सूरज जो एक रात को चाहता हूँ !!-