Anant Sagar Tiwari   (अनंत)
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Advocate by profession part time shayar ☺️
Joined 4 August 2018


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22 JUN 2021 AT 2:17

जो इस शहर का खुदा रहा था,
हमारे हक़ में कहाँ रहा था।
मेरी कहानी में जो नहीं था,
मेरा ही किस्सा सुना रहा था।
वो अपनी दुनिया बना के उट्ठा,
मै अपनी दुनिया उठा रहा था।
उधेड़ बुन सी लगी हुई थी,
कोई खयालों में आ रहा था।
पहुँच का रास्ता कठिन था लेकिन,
किवाड़ मेरा खुला रहा था।
जो आज पत्थर सा हो गया है,
कभी कोई देवता रहा था।
मै उम्र भर इम्तेहान में था,
कोई मुझे आज़मा रहा था।
तुम्हारे हिस्से में बाग़ होंगे,
हमें तो सहरा बुला रहा था।
जो तेरी किस्मत में आ गया है,
कभी वो तारा मेरा रहा था।
अज़ब चरागों का कारवां था,
जो तीरगी को बढ़ा रहा था।

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16 MAY 2021 AT 3:21

कई दिनों से उदास हूँ मै,
किसी खलिश की तलाश हूँ मै।

भटक रही है जो दरिया दरिया,
अज़ीब तरह की प्यास हूँ मै।

अगर ये दुनिया मेरी नहीं है,
तो किसकी खातिर उदास हूँ मै।

जो आज गंगा में बह रही है,
किसी के सपनों की लाश हूँ मै।

अभी न झगड़ा करो खुदाओं,
अभी ज़रा बदहवास हूँ में।


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15 APR 2021 AT 0:05

चमन का मौसम बदल गया है,
गुलों को बागवान छल गया है।

मै अब तलक कू-ए-यार में हूँ,
वो हर गली से निकल गया है।

तुम्हारे हिस्से की कश्मकश है,
जहाँ का झगड़ा सम्भल गया है।

ये मुठ्ठी अब भी बंधी हुई है,
न जाने क्या क्या फिसल गया है।

जो मेरी नींदे उड़ा रहा था,
वो ख़्वाब आँखें बदल गया है।

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12 APR 2021 AT 0:03

ए रहगुज़र ए रहगुज़र,
कैसे कटे तन्हां सफर,
छोड़ा है घर सब हार कर,
चुभती तो है ये घूप पर,
जलता है जो छाला अगर,
किससे कहें किसको ख़बर,

जानिब मेरी चेहरा तो कर,
ए मेहरबां कुछ बात कर।
ए मेहरबाँ कुछ बात कर।
बाद-ए-सबा ए दिलरुबा,
ए मंजरों ए कहकशां,
लिखा है मेरे नाम क्या,
वीरानियाँ या क़ाफ़िला,
किस सिम्त है चलना भला,
दिखता नहीं क्यों रास्ता,

है दूर जो मंज़िल अगर,
ए मेहरबाँ कुछ बात कर।
ए मेहरबाँ कुछ बात कर।
बिखरे हैं सारे ख़्वाब क्यों
उम्मीद क्यों पथराई है,
तपती काली रात क्यों,
क्यों चांदनी मुरझाई है
उठते हैं क्यों ये मरहले,
होती नहीं ग़म की सहर,
ए मेहरबाँ कुछ बात कर।
ए मेहरबाँ कुछ बात कर।

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8 APR 2021 AT 0:04

नाज़ की चादर सियासत ओढ़ कर सोती रही,
रात भर हरिया की बेटी भूख से रोती रही।

इस अँधेरी खोह के मुद्दत से दिन बदले नहीं,
मुद्दआ रोटी का था और मसअला रोटी रही।

मजलिसों में खूब गूँजी बात तो हक़ की मगर
बात ही होती रही थी बात ही होती रही।

तालियाँ मिलती गईं महफ़िल में ओछी बात पर,
कद बड़ा होता गया पर शख़्सियत छोटी रही।

एक दिन लौटी थी राधा शाम को स्कूल से
उम्रभर फिर सर पे रख एक हादसा ढोती रही।

शब्दार्थः---
नाज़:- अभिमान, ठसक

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5 APR 2021 AT 1:46

पेड़ की शाख़ पर नहीं आती,
अब वो चिड़िया नज़र नहीं आती।
रेत से प्यास बुझ न पायेगी,
आगे नदिया नज़र नहीं आती।
एक दिन राह भूलती है हथनी,
और फिर लौट कर नहीं आती।
जाने कितनों की सांसें कटेगी,
क्यों कुल्हाड़ी ठहर नहीं जाती।
आग जंगल की जब सुलगती है,
मौत आगाह कर नहीं आती।
एक दुनियाँ में जी रहे हे हम,
एक दुनियाँ नज़र नहीं आती।

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4 APR 2021 AT 1:43




तुम्हारी याद के जंगल खंगाले जा रहे हैं,
ख़तों से बीते हुए दिन निकाले जा रहे हैं।

आज तन्हां हुए तो जैसे ध्यान आया,
हम अपने ज़हन में किसको सम्हाले जा रहे हैं।

ये सारे ख़्वाब भी उसके लिए देखे गए थे,
ये सारे ज़ख्म भी उसके हवाले जा रहे है।











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1 APR 2021 AT 23:42

अपनी नज़र से अपना ही मेयार देखना,
फ़ुर्सत मिले तो रौनक़-ए-बाज़ार देखना।

कितना बड़ा था उम्र के दरिया का फ़ासला,
उस पार से कभी तुम इस पार देखना।

देखो जो कभी मेरा इंतज़ार देखना,
रस्ते को बार बार कई बार देखना।

लाशों को देखने का हासिल भी कुछ नहीं,
जाती है किस मियान में तलवार देखना।

आ जाओ खिल उठेंगे आँगन के सारे फ़ूल
रोयेगी तुम को देख के दीवार देखना।

मेयार: क़ीमत

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23 MAR 2021 AT 23:28

जो मेरे दुःख की तर्जुमानी है,
ग़ालिबन आपकी कहानी है।
दरमियां दूरियां नुमायां हैं,
हाँ मगर इश्क़ जावेदानी है।
मुझको ये खेल हार जाना है,
और उम्मीद भी बचानी है।
डूब जाता मगर ख़्याल आया
तेज़ दरिया है गहरा पानी है।
चार दिन की ये बेक़रारी है
चार दिन आपकी जवानी है।

तर्जुमानी:- अनुवाद
ग़ालिबन:- संभवतः
जावेदानी :- अनंत, अपरिमित।





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21 MAR 2021 AT 22:54

ऐ शम्स तेरी घूप से कोई गिला नहीं,
अपने ही रास्ते में कोई सायबाँ नहीं।

हम बेघरों को ख़्वाब भी आधे ही आते हैं,
दिखती तो है ज़मीन मगर आसमां नहीं।

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