पूजा के अर्पित फूल हो, अर्धांगिनी का सुर्ख सिंदूर हो,
जीवन की सहचरी, वो जीवनपर्यन्त तुम गणगौर हो!
धरा पर चाँद का टुकड़ा हो, मेरे व्रत का तू आधार हो,
प्रेम अर्ध्य तुम तक पहुंचे वो अनुष्ठान तुम गणगौर हो!
दिये कि शांत लौ हो, रौशनी अपनत्व की चुँहु ओर हो,
दिए बाती का रिश्ता जैसा, वो पूरक तुम गणगौर हो!
रिमझिम से तर विहार हो, मन चितवन चितचोर हो,
आँचल बन जाये सर पर पल्लू, वो तुम गणगौर हो!
सावन की बहकती बयार हो, सौंधी खुशबू प्रेम की हो,
मेघ मल्हार सी सरगम जैसी, वो पायल तुम गणगौर हो!
बदली, मेघ की शहजादी हो, ओस सुबह की लगती हो,
कजरारी आंखों का काज़ल, वो दुल्हन तुम गणगौर हो!
चंदा की सोलह कला हो, सोलह श्रृंगार से परिपूर्ण हो,
सोलह सोमवार का पुण्य, वो सोलह आने तुम गणगौर हो
शिव प्रदत वरदान हो, गौरी का अटल आशीर्वाद हो,
गौर-ईसर सी जोड़ी "राज" वो चाहत तुम गणगौर हो! _राज सोनी-
फसलों के ह्रास को, जेठमासे की प्यास को,
अमिया की खटास को, गन्ने की मिठास को,
खाली हाथ फ़क़ीर को, लकीर के फकीर को,
ख़्वाबों की तासीर को, हकीकत की नज़ीर को
खामोशी की आवाज को, लफ्ज़ों की साज को,
जज्बातों के ज्वार को, मोहब्बत के इक़रार को
प्रेमिका की करार को, प्रेमी के बेक़रार को,
रूह के फरमान को, दिल के उठे अरमान को,
प्रेम के एहसास को, ख़त किसी ख़ास को,
स्त्री के श्रृंगार को, दंपत्ति की तकरार को,
मंद मंद समीर को, उठ चुके ख़मीर को,
स्पंदनहीन शरीर को, मर चुके ज़मीर को,
अँखियो के नीर को, उजड़ चुके कुटीर को
सावन की बहार को, बरसात की फुहार को
नवजात की झंकार को, श्मशान की अंगार को,
सुहागिन की मल्हार को, विधवा की पुकार को,
यौवना के अंग आकार को, झुरियों के साकार को
वासना की उभार को, विरक्ति के इस संसार को,
चाहता हूँ मैं लिखना....पर शब्द नहीं हैं! _राज सोनी-
💏हर सुहागन की पहली ख्वाइश 💏
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* जब ये साँसें मुझे छोड़कर जाने लगे *
* तेरी बाँहों मे दम मेरी निकले पिया ,*
* अपनी आँसू का एक कतरा न बहाना *
* कसम है मेरे प्यार की तुझको पिया ,*
💕👉( ❤Read full in caption ❤ )👈💕-
स्त्री की छोटी सी चाहत🤗
ये बिंदिया, ये सिंदूर ,
ये लाली, ये काजल,ये कंगन!!
सब तेरे नाम से पहने है उसने!!
तू बस खुशियां ही
अपने प्यार की सलामत रखना !!-
सात फेरों में वादा था ...
साथ तुम्हारा निभाने का ,
पर अब तुम्हारी जुदाई में ...
जीना मंजूर है मुझको .....
कभी चाहत थी ....
सुहागिन विदा हो जाऊं ...पर !
अब मुझसे पहले ...
तुम्हारी विदाई मंजूर है ... मुझे !-
सुहाग वाला समान देख मन उसका भी ललचाता होगा न,
बेबस मन को दिल उसका न जाने कैसे मनाता होगा न।-
माथे की बिंदिया है लाल
आंखों की निंदिया है लाल
शादी का जोड़ा है लाल
दिल जख्मी कर छोड़ा है लाल..!!
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