सुई और धागे का रिश्ता भी अनोखा है
एक सख़्त होता है तो दूसरा नर्म होता है-
तुम तलवार भी चलाते तो मैं हँस कर सह लेता।
किसी और के हाथ से सुई भी मुझे ज़ख्म देती है।-
डॉक्टर और मरीज देखो खेल रहे हैं होली
सुई सी पिचकारी है और रंग बिरंगी गोली-
चलता रहता हूँ दिन भर,
घड़ी की सुई की तरह
सुबह जहाँ से चला था,
शाम तक पहुँच जाता हूँ उसी जगह-
हम रोज सहते जख्म हैं, मौका कोई पहला नही
चुभन है बातों की, सुई का कोई मश'अला' नही,
अब दूर जाने की फिराक मे होंगे मेरे अपने सारे
कई दफा मनाने भी गए, मगर कोई बहला नही।-
हम तुम
घड़ी की सुईयों की तरह
बदलते रहते हैं
वक्त को।
किसी तीसरे के
आने पर भी
कुछ बदलता नहीं है
बीच हमारे।
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चाहे सुई में होगा धागा पिरोना
या लगाना हो अचूक निशाना
दृष्टि केंद्रित और चित्त एकाग्र होना चाहिये।-
न ही सुई मैं बना, न ही मैं धागा हूँ
पैबंद भी बन न पाया, ऐसा अभागा हूँ-
सुई और धागा साथ लेके चला करते हैं,
टूट जाए दिल तो खुद ही सिल लिया करते हैं।-