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अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहिं बहुत रघुनायक छोहू।।
करहिं कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना।।-
तुलसीकृत 'रामचरितमानस' में सात कांड हैं। उसमें पांचवे कांड का नाम 'सुंदर' है। इसका नाम 'सुंदरकांड' क्यों है?
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रामदूत मैं मातु जानकी।
सत्य सपथ करुनानिधान की॥
(हे माता जानकी!
मैं रामदूत हूँ।
करुणानिधान की
सच्ची शपथ करता हूँ।)-
विभिन्न कारण हैं ।
1- इस काण्ड की कथा सुन्दर नामक पर्वत पर प्रारंभ होती हैं एंव समाप्त होती हैं, इसलिए सुन्दर काण्ड ।
2- इसी काण्ड में माता सीता का दर्शन हनुमान जी को हुआ इसलिए सुन्दर काण्ड ।
3 - इसी काण्ड में पहले माँ सीता ने हनुमान जी को बेटा कहा और बाद में फिर आने पर श्रीराम जी ने बेटा कहा इसलिए सुन्दर काण्ड ।
4- इसी काण्ड मे विभीषण जी को रामजी का दर्शन हुआ इसलिए सुन्दर काण्ड ।
5- इसी काण्ड में विभीषण जी का राज्याभिषेक हुआ इसलिए सुन्दर काण्ड ।
6- इसी काण्ड में हनुमान जी को भक्ति प्राप्त हुई इसलिए सुन्दर काण्ड ।
7- इसी काण्ड में रामजी की सूचना माता सीता को मिली और माता की सूचना प्रभु श्री राम को मिली इसलिए सुन्दर काण्ड ।-
सूर्य गबन से लंका दहन
(आज फिर भूख लगी हनुमान को 😊,
इस बार हनु जब लंका था
रावण को देख के सनका था
ले चुका खबर माँ सीता की
पर काम अभी था कुछ बाकी
....
(पूरी कविता का आनन्द अनुशीर्षक में धैर्यपूर्वक लें)-
शंकर ने अवतार लिया,प्रभु सेवा मन में ठानी
सीता मां के आशीर्वाद से,राम भक्त हैं कालजयी
संकट मोचन तत्क्षण है संकट हरते,जय मारुति
नाम लेते ही,भव दुख हरते,पवनसुत, बजरंग बली।।
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सिंधु तीर एक भूधर सुंदर!
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर!!
बार-बार रघुबीर सँभारी!
तरकेउ पवनतनय बल भारी!!-