भर कर एक चुटकी सिंदूर की मांग में
वो ले गया घर की रौनक घर वालों के ही सामने-
फ़िक्र में वो तमाम यादें, ख्यालों में उथल-पुथल दे गई,
मगर गई तो भी वो लेकिन मुझमें अपनी कमी दे गई!
नींदों में ख़्वाबों का रेला और यादों का नजराना दे गई,
हकीकी नहीं लेकिन फिर भी एक धुंधली तस्वीर दे गई!
आँखों में कतरे अश्कों के और पलकों में सैलाब दे गई,
जाते जाते खत में वो पहला पहल सूखा गुलाब दे गई!
आँखों मे अक्स दर अक्स और खुद की परछाई दे गई,
दूर बहुत दूर होकर भी लेकिन वो नजदीकियां दे गई!
खामोशियों में लफ्ज़ और लफ्ज़ों में खामोशी दे गई,
लेकिन अनकही बातों की दर्दभरी फ़ेहरिस्त दे गई!
दुआ में खुद और ख़्वाहिश में मन्नत का धागा दे गई,
सिंदूर के हक़ में वो लेकिन अपना सबकुछ दे गई!
रूह में मोहब्बत और मोहब्बत की एक मिसाल दे गई, _राज सोनी
सबकुछ छीन के मुझसे लेकिन वो अपना दुपट्टा दे गई!-
हमें समंदर का इतना यूँ ख़ौफ़ न दिखाओ मियां,
हमने उसके हंसते हुए गालों में ही भंवर देखे हैं!
हमें आसमाँ के चमकते तारों से नहीं है लेना देना,
हमने उसकी आँखों में सितारे उतरते हुए देखे हैं!
हमें सात सुरों की सरगम लगती है बेसुरी लयताल
हमनें उसके पायल के घुंघरू की खनक देखी है!
हमें सावन की काली घटाओं से नही पड़ता फर्क,
हमनें उसकी बहकती लटों की आवारगी देखी है!
हमें सुर्ख गुलाब मासूमियत की मिसाल ना दो तुम,
हमनें उसके दहकते हुए लबों की नजाकत देखी है!
हमें कभी लग ही ना पाएगी किसी की बुरी नज़र,
हमनें उसके माथे, नजर की काली बिंदी देखी है!
हमें तुम चाहे कितना ही बेवजह बहका दो "राज"
हमनें उसकी मांग में मेरे नाम का सिंदूर देखा है! _राज सोनी-
इश्क़ में कुछ ऐसा काम कर दूं...
दो दिल एक जान है,
ये बात सरेआम कर दूं...
चुटकी भर सिंदूर से,
मैं तुझे अपने नाम कर लूं...-
मेरे नाम की मेहंदी लगाए बैठी है,
लगता है मुझसे इश्क़ लड़ाए बैठी है...
मेरी निशानी माथे पर सजाए बैठी है,
लगता है मुझसे प्यार जताए बैठी है...
मेरे बंधन को गले मे बांधे बैठी है,
लगता है मुझसे दिल हारे बैठी है...
मेरी बलाएँ आंखों में धर बैठी है,
लगता है मुझसे मोहब्बत कर बैठी है...
मेरे रंग में लाल रंग ओढ़े बैठी है,
लगता है मुझसे उल्फ़त जोड़े बैठी है...-
महक जाऊं तेरी जिंदगी के हर खुशनुमा लम्हे में,
काश, मैं तेरे हाथों में मेहंदी सा रचा-बसा होता!
धड़क जाता मेरा दिल तेरे आने की आहट से ही,
काश, मैं तेरे पैरों में पायल की सी झंकार होता!
खनकता रहता मैं तेरे दिल मे हर पल हर लम्हा,
काश, बन के चूड़ियाँ मैं, तेरी कलाई में होता!
चमकता मैं चाँद की तरह अमावस की रात में भी,
काश, बन के काजल तेरी आँखों मे समाया होता!
खुशबू की तरह बिखर जाऊं तेरी हर मुस्कुराहट में,
काश, बन के गजरा मैं, तेरे बालों में इतराया होता!
बन के सूरज दमकता मैं ओज सा तेरे तन-मन मे,
काश, मैं तेरे माथे की सुर्ख दमकती बिंदी होता!
बना लूँ तुमको जन्म जन्मांतर का जीवनसाथी,
काश, मैं तेरी मांग का अमर सुहाग सिंदूर होता!
__राज सोनी-
नारी कि अभिलाषा उसके मान-सम्मान कि परिभाषा है सिंदूर ,
पिता का साया उठाने वाला ,पति कि ओर बढ़ाने वाला,
उसकी नयी जिन्दगी कि रचने वाला कहानी है सिंदूर ,
माँग को रंगने वाला , माँ का मोह हटाने वाला
भविष्य के परिवर्तन को दर्शाता है सिंदूर ,
इसके महत्व को शब्दों में पिरोना आसान नहीं है
नारी की सम्पत्ति होती है सिंदूर , वो इससे नहीं होना चाहती दुर।-
सुर्ख़ लाल सिंदूर से भरी नारी की मांग,
दुनिया का 'एकमात्र' "सुखद बंटवारा" है।
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माँ के पल्लू से निकलकर
सर पर लाल चुनर तक
ससुराल से लेकर पीहर तक
कितनी क़ीमत अदा करती है
चुटकी भर सिंदूर मांग में
जब एक औरत सजाती है
फिर वो पापा की गुड़िया
माँ की लाडो कहाँ रह जाती है-