हर दिन इक नई कहानी है।
आंखों में तेरे क्यों पानी है।
बीती बातों को ना याद करो,
अब गढ़नी सुबह सुहानी है।
इतिहास नया अब हम रचेंगे,
यह दिल अपना मनमानी है।
कड़ा परिश्रम किया है जिसने,
दुनिया उसकी ही दीवानी है।
रोती नहीं अब हंसती बहुत मैं,
"श्रेया" हो गई थोड़ी सयानी है।।-
मुझे लागी ये कैसी लगन साँवरे,
तुझे हरदम पुकारे ये मन साँवरे।
प्रीत की डोरी से हुआ क्या बंधन साँवरे,
इक तुझे छोड़ सबकुछ स्वप्न साँवरे।
॥जय श्री कृष्णा॥-
तस्वीर तो बहुत देखे हैं तेरे,
छवि देखी है अनेक प्रकार की।
नाम भी बहुत सुने हैं,
कृष्ण, कन्हैया, नंदलाल जी।
अब जरा दर्शन भी दिखाओ यथार्थ,
दासी को अपने कर दो कृतार्थ।-
आँखों में है नमी
दिल में है तेरा प्यार
क्या कहे तुमसे ओ मेरे साँवरिया
कितना मुश्किल है
तुमसे दूर होकर जीना ,
तन्हा रातों में अकेली
रोया करते है छुपकें
कैसे कहे तुमसे ओ मेरे साँवरिया
तेरी ही यादों में
करवटें बदलती ,तड़पती रहती हूँ रातों में ,
तन्हा अकेली होकर भी
हरपल तुझे महसूस करती हूँ
दूर होकर भी तू पास लगे ओ मेरे साँवरिया
मेरी साँसो में कही बसा हैं
सिर्फ तेरे ही प्यार की खुश्बु,
Sunita singh
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प्यारे साँवरिया! तुम्हीं मेरे कंत हो,
बिन तुम्हारे कब जीवन में बसंत हो?
तन हो कहीं भी पर मन हो तुम्हीं में,
हे मोहन! तुमसे प्रेम-भक्ति अनंत हो।
सूरतिया पर तेरी मैं बलिहार जाती,
कभी तो तुम्हारी यह मूरत जीवंत हो।
गिरूं हर कदम पर संभालते हो तुम,
हे प्यारे! मन मेरा तुझमें ही संत हो।
"श्रेया" नैना निहारत हैं बाट तिहारे,
दुनिया के कान्हा तुम्हीं भगवन्त हो।-
वृंदावन की कुंज गलिन में,फाग खेलत रसिक साँवरिया
भीग जाऊँ जब तेरे प्रेम में, तो चढ़े न कोई रंग दूजा
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म्हारा.. हिवड़ा में उपजै रे पीर थारी प्रीत री
कद आवोगा..हो..कद आवोगा..
केसरिया म्हारा सावण री रुत बीत गी..
रह्या करै सीमा पै सजणा गोड़ी थानै भावै छै..
अइंयां कैयां हरजाई थानै गोरी याद न आवै छै..
वरत करूँ परिकरमा डारूँ मै तौ थारी जीत की.
कद आवोगा साँवरिया...
वीराँ वाड़ो रंग कसूमल साँवरिया थानै भावै है..
भातृभूमि का आगे थानै म्हारी याद न आवै है
बिन सजणा सजणो ना भावै हिवड़ो हो ग्यो ढीठ जी
कद आवोगा केसरिया...
खड़ी एकली नीम का नीचै जोऊँ थारी बाटड़ली..
जाने कौन घड़ी बेदरदी थारी म्हारी आँख लड़ी..
ओल्यूड़ी सूँ हिवड़ो तड़पे किस्यी प्रीत री रीत जी
कद आवोगा केसरिया म्हारा सावण री रुत बीत गी
कद आवोगा केसरिया म्हारा सावण री रुत बीत गी.
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"सांँवरिया"
कहांँ जाऊंँ कहीं और
तेरा ही नाम जपना है
देखूंँ तेरी छवि माधव
एक पल न बिसरना है
तेरे प्रेमियों की है ठौर
तेरे सानिध्य में रहना है
जानो तुम ये साँवरिया
हृदय में मेरे बसना है
तेरे मुकुट में मन मोहन
चंदोवा सा ना सजना है
मधुर तान छेड़ने वाली
बांँसुरिया सा बनना है
तुम आओ रंग रसिया
मन वृन्दावन करना है!
काव्यांजलि "काव्या"
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तेरे बिना कटे न ज़ुल्मी रतिया, आजा रे साँवरिया,
याद आती हैं तोहरी बतिया, आजा रे साँवरिया,
काटती हमको बैरन तनहाई, तेरी कमी जो लाई,
जलते हम ऐसे जैसे कोई दिया, आजा रे साँवरिया....-
माना धूसरित धूल हूँ, अशोभित शूल हूँ
पर आजा ना साँवरिया, समर्पित फूल हूँ।
दिन हो, रैन हो, साँझ सवेरे,
बन जोगणिया तुझे अपलक निहारूँ।
तू प्रेम की सूरत, मैं बन श्रृंगार,
निज सुधि बुधि खोये, बस तुझे सवारूँ।
तू है खेवैया, मैं शापित कूल हूँ,
आजा ना साँवरिया, समर्पित फूल हूँ।
मैं प्रीति का तृषित मरुस्थल,
तू करुणा का अथाह सागर है।
मैं बैठी आज मीरा बनकर,
तू ही मेरा गिरधर नागर है।
तू है रमैया, मैं बिसरित भूल हूँ,
आजा ना साँवरिया, समर्पित फूल हूँ।-