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मैं सरल लिखना चाहती हूं
ताकि सब समझ सकें
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सब समझते हैं
मैं सरल हूं-
समझ सकते हो क्या
तुम्हे याद कर मेरे चेहरे का यूँ गुस्से से लाल हो जाना
फिर धीरे से आखों में आँसुओ का सैलाब आना
उन आँसुओ को देख होठो का मुस्कुराना और
फिर तुम्हारे उन्ही ख्यालों में वापस से मेरा खो जाना-
कभी-कभी सामने पहाड़ भी
आ जाये तब भी तनिक भय
नहीं लगता.............
जितना कष्ट
एक छोटा सा तिनका
दे देता हैं.........
क्यूं......?
क्यूंकि उसका कोई
अस्तित्व नहीं होता
कोई वजूद़ नहीं होता
ना ठिकाना होता, कि
वह पहाड़ की तरह
एक जगह स्थित रह सकें
वायु के वेग में चलायमान
रहता सदैव, जब चुभ जाता हैं
फिर उथल-पुथल कर देता है
सब-कुछ और फिर .......
अनिष्ठ होना तय कर देता हैं !
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आप कितने समझदार है इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है
लोग आपको कितना समझ पाते हैं 'अभि' फर्क इससे पड़ता है-
माँ ने बच्चों का दर्द समझ लिया
बच्चों ने एक माँ का दर्द न समझा-
मैं वो किताब हूँ जो पढ़ी तो जाएगी
मगर पढने वाले के समझ में नहीं आएगी-
समझने वाले समझते हैं कि 'हम करते है ' टाइम पास
इससे बेहतर यह है कि ' वो अपना दिल रखें 'अपने पास-
रक्त की बूंद-बूंद में समायी है
ये सोच ज़हन ने नहीं
हमारे रोम रोम ने ऊपजायी है
एकदम कहां हो पायी थी ये
सालों की मेहनत लगायी है
बचपन से ही देख सुनकर
ये सोच दुसरो से अपनायी है
दृष्टि दृष्टिकोण ख़्वाब ख्याल
सब में साथ नज़र आयी है
कहां समझ थी हम में इतनी
ये किसी और की जन्मायी है
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