जनहित में जारी :-
नमक और चीनी के फ़र्क को समजना,
रंग पे मत जाना।-
बहूत मूस्कान थी ईन लबो पे ...और
कीसीने मेरा हाल पूछ लीया
मुजे समज ना उसकी शख्सीयत...
उसने हाल पुछ लीया या
जाल फेंक दिया..
वंदना परमार-
गोष्ट एखादी मर्यादे पेक्षा जास्त वा कमी कळली की,
माणसाच वागण त्याच्या पोच नुसार बदलत...
हीच खरी कसोटी त्यांची खरी चमक स्पष्ट करते,
कारण समजून घेण्या सोबत नियंत्रण ही तितकेच महत्वाचे...!!-
'झुर्रियों' को 'सुर्खियों' में बदल डालें,
वो हून्नर मुझमें कहां..?
हर बार 'किस्मत' को मेरे,
'सफलता' का नशा चडाऊं..!- कैसे..?
तूम्हें मुबारक अय खूदा..!
जन्नत के 'लोभ' और जहन्नुम
के 'डर'- से जो बचा लिया हमें..तूमने..!
शुक्रिया...तेरा..! हजार -बार...!!!-
शायद तुझे समज में ना आए
मेरा दिल तुझे कितना चाहता है
तू अनजान भी नहीं है
तू पत्थर दिल भी नहीं है
तेरा दिल मेरी तरह अभी जुड़ा जो नहीं है
मेरा छोटी छोटी बातों पे नाराज होना
शायद तुझे समज ना आए
तेरी आवाज़ सुनने को तरसता ये दिल
मेरे उस इंतेज़ार का एहसास
शायद तुझे समज ना आए
तेरी यादों में बहते आंसुओ की क़ीमत
शायद तुझे समज ना आए
एक दिन अगर बात ना हो तुझसे
तो दिल जो जाए उदास मेरा
मेरी उस उदासी की तड़प
शायद तुझे कभी समज ना आये
दिन की शुरुआत तेरी यादों से
और ख़त्म तेरी यादों के साये तले
उस याद में तड़पती रूह का एहसास
शायद तुझे समज ना आए
खुद ना संभल के तुझे संभालना
शायद बचपना मेरा लगे तुझे
पर उस बचपने में छिपी फिक्र तेरी
तू शायद समज ना पाए
फिर भी आदत है मुझे वो सब कहने की
जो पसंद नहीं है शायद तुझे
हालत मेरे दिल की
काश तू भी कभी समज पाए-
ख़्वाहिश है मेरी बस इतनी की ज़िक्र अपना मेरे अल्फ़ाज़ में तुम समज जाओ ,
दुनियाँ मेरी शायरी पे वाह वाह करे ना करे कोई गिला नहीं मुझे ।-
आपको समझ में आजाये ऐसी कोई बात नहीं है ,
क्योंकि आपको हमारे लिए ऐसे कोई जज्बात नहीं है।।-
वाळवंटी हिरवे तण
चंद्रसम शीतल बहरले मन,
हीमाहूनी गार शहारा स्पर्श लाघवी
उमलून गंधळला सौख्याचा क्षण...
मन सैरभैर भावना बर्फाळ शांत
हे तर अभुद्य निबीड गहन,
मार्गस्थ झाले वाटा धुंडाळण्या
तीक्ष्ण घाव खोलिव ना जीवन...
लुप्त गुप्त संवेदना हृदयी शर
गूढ ना उलघडे उलघाल समोर अंधार घन,
आयुष्य अर्धे मध्यानीस आली
यश गवसेल नक्कीच नको घेऊ उगा मरण...-