छोटी-छोटी ख़ुशियाँ जोड़ो, उदासी से नाता अपना तुम तोड़ो।
मेहनत करो, अपनी क़िस्मत बनाओ, बेईमानी से न रिश्ता जोड़ो।
सच्चाई, अच्छाई और वफ़ादारी की मिसाल बनाकर के दिखाओ।
धन, लालच, क्षणभंगुर सफलता की चकाचौंध के पीछे मत दौड़ो।
और जो भी तुमसे गलती से अनजाने में कभी भी भूल हो गई हो।
अंदर के अच्छे इंसान को जगाओ, अपने पाप के घड़े को तोड़ो।
हाँ, ये सच है कि अन्याय का अंधेरा कुछ ज्यादा ही गहरा होता हैं।
पर तुम अपने न्याय के हाथ की रोशनी से उसके कर को मरोड़ो।
मेहनत की जब कमाते हो और ईमानदारी का खाते हो तो सुनो।
सुन! आज के बाद अपने तू हक़ का एक भी पैसा कभी मत छोड़ो।
आत्मविश्वास वो हथियार है जिससे व्यक्ति हर युद्ध जीत सकता है।
आत्मविश्वास पर विश्वास करो और लड़ो, चाहें सामने हो शत्रु करोड़ों।
जो आज है वहीं लोग तुम्हारे अपने है "अभि" भले कोई रिश्ता ना हो।
जो चला गया उसका अफ़सोस मत कर, उसे दरकिनार कर, छोड़ो।-
मस्ती में डूबी हस्ती मेरी,
बस एक मेरा होने को दीदार तेरा II
घुंघरू बांध नच्चा तेरे इश्क मैं,
गरुर में बह जाए कतरा कतरा मेरा II
रूह मेरी दी डोर हूण तेरे हथ,
मैं हूण मैं ना रेवां मेरे विच हूण दीदार तेरा II
हथ जोड़ा तेनु रिझा नाल मनावा,
हथी रिन के खीर पूड़ी बुर्की बुर्की खिलावां II
सोंणे सतगुरू वकिल साहिब दी नाम साख सुनवा,
मनोज आसां दी मिट्टी मिट्टी विच रुल्जे शरीर मेरा II
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पलक झपकने कि देर है
फिर संसार एक अंधेर है
ताम झाम जीते जगत के लेर है
मृत्यु एक शाम जीवन नया सवेर है
नाम सुमर मेरे मना अब काहे की देर है-
# 18-12-2021 # काव्य कुसुम # सत्संग #
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जीवन की आकुलता से बचने जीवन में अपने सत्संग कर लो।
सत्संग कर जीवन में अपने अब ख़ुशियों से झोली भर लो।
जीवन में अपने सत्संग से दूर रहे तो जीवन सफल नहीं होगा -
सत्संग ही जीवन पार लगाता सत्संग से अब जीवन तर लो।
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==शुभ प्रभात ==जय श्रीकृष्ण ==जय जिनेन्द्र ==
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सब बैठे है मंडेरे हर दिवाली दीप जलाए
हमने अपनी बस्ती में सदा प्रेम के गीत गाए
अटूट ज्योति देही के भीतर ये अब हमको कोन बताए
हम है उस देश के दीवाने जहां कोई ना आए कोई ना जाए
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किरण प्रेम की हृदय को छूकर, बिखेरे इंद्रधनुषी रंग
प्रेम के संग जो सत्य को पाया, प्रेम लगे सत्संग-
भीतर कि गहराइयों में उतर यूं देखा तुम्हें तो
बंद जुबां मेरी फ़िर भी बातें तुमसे हो रही...!-
"साँसों की माला पे सिमरु मैं तेरा नाम,
मेरे मन की मैं जानूँ तेरे मन की राम।।"
- अंजली सिंघल-
बाबा जी तुम बहुत याद आते हो
लगता है जैसे हकीकत मै बुलाते हो
शुक्रवार को घर से मुझे अपने पास बुलाया
डंगर वाली सेवा नू मेरे दिल विच वसाया
दे दर्शन रूहा नू प्रेम दा प्रसाद खिलाया
वो पल मेनू आज बाबा जी बहुत याद आया
बैठाकर भजन में सतलोक का गमन करवाते हो
बाबा जी तुम बहुत याद आते हो...
दिनभर सेवा से प्रसन्न दिल आत्मचित रूहानी
शाम को तेरे दर्शन से खिलती मेरी रूह मस्तानी
खुशिया दिल में ऐसे जैसे मिल गया संत रूहानी
आलम बेपनाह तेरी रहमत से में गुरुदेव दिवानी
लूटा देते हो सारी खुशियां जब दर्शन देने आते हो
बाबा जी तुम याद बहुत आते हो...
बिन पूछे डेरा का सारा खर्चा बाबा जी आपने बताया
देख के तेरी सूरत मस्तानी गुनहगार मुस्कराया
भटका था चौरासी की गलियों में तुमने राह दिखाया
बाहर मत खोज उसे मनोज सतगुरु भीतर समाया
दुख सुख हर घड़ी में इक तुम ही साथ निभाते हो
बाबा जी तुम बहुत याद आते हो-
बंद आंखों से मुस्कराता हूं मैं
ऐसे अपने ईश्वर को रिझाता हूं मैं
छोड़ के मिट्टी का शरीर अपना
ईश्वर के पास चला जाता हूं मैं-