कुछ इस तरह से दुनिया में मैंने इक इंसान खो दिया ,
उसने पूछा 'रहमान ?' ,और मैंने 'राम' कह दिया !
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पूछा जो इक शक़्स से शहर-ऐ-उन्स में सिफ़र का ठिकाना ,
उस शक़्स ने मुझे मेरे ही घर का पता दिया !
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तुम न समझो मुझे ख़ास,
मैं शक़्स-ए-आम हूँ,
छुपा कुछ नहीं है मेरा,
मैं जो भी हूँ जैसा भी हूँ सब सरेआम हूँ...-
वो इक शक़्स था मेरा जो मुझे मेरे हर अक्स में दिखता था ,
मैं जो ढूंढता हूँ आज भी उसे, वो मेरे हर लफ्ज़ में दिखता है !
मैं खोना चाहूँ भी तो छिपाऊँ किन अंधेरों में खुद को ,
वो आफताब सा चमकता मुझे हर तिमिर में दिखता है !
मेरे रोने पर जब रोते हैं ये आसमां के बादल भी ,
वो बूँदों में आता है ,मुझे हर बारिश में दिखता है !
कभी रस्ते पर चलते वक़्त ,जो खो जाऊँ मैं खयालों में ,
वो मेरी ज़ुल्फ़ों को सँवारता मुझे इन हवाओं में दिखता है !
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एहसास अधूरा रेह गया
तेरा साथ भी हमसे छुट गया
जिसे दिल मे बसाए रख्खा था
वो शक़्स ही हम से रूठ गया-
नींद के बगीचे में, मेरे ख्वाबों के छोटे से घर में रहता है
अजीब शक़्स है, सामने न भी हो तो, नज़र में रहता है-
न जानता है वजूद खुदा का और मंदिर मस्जिद तलाशता है
वो बवजूद शक़्स बेवजह ही खुदको परवरदिगार समझता है
Na jaanta hai vajood khuda ka aur mandir masjid talaashta hai
Vo bewajood shaks bewajah hi khudko parvardigaar samjhta hai-
न रोशनदान की चाह है, न तो उसकी रोशनी की।
चाह है तो उस शक़्स की, जिसके होने से ज़िन्दगी ज्योतिर्मय हो।।
न लोगों की चाह है, न तो उनकी ख़िदमत की।
चाह है तो उस विश्वास की, जिसके होने से ज़िन्दगी खुशहाल हो।।-
हर शक़्स मोहब्बत के क़ाबिल नहीं होता,
और जो क़ाबिल होता है वहीँ हासिल नहीं होता।।-