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वैसे आज तो सोशल साइट पर उन्होंने भी अपनी डीपी और स्टेटस लगा रखे हैं राम के नाम का, जो शायद राम मंदिर में प्रवेश भी ना कर पाए जिन्हें मूर्ति छूने तक का अधिकार नहीं वह भी भगवा उड़े घूम रहे हैं एक बार मंदिर की एंट्री बुक में असली नाम और जाति तो लिखवा कर देखो समझ में आ जाएगा कि तुम हिंदू हो या शूद्र एक बार मूर्ति छूने की बात तो कर कर देखो तुम्हें बता दिया जाएगा कि तुम हिंदू हो या शूद्र
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समाज ने कहा तुम कमजोर हो,
स्त्री ने मान लिया।
राजा ने कहा तुम रंक हो,
प्रजा ने मान लिया।
पंडित ने कहा तुम अपवित्र हो,
शूद्र ने मान लिया।.
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मुझे समाज, राजा और पंडित से
कोई शिकायत ही नहीं।
मुझे स्त्री, प्रजा और शूद्र से
कहना है,
चौकस रहो!
तुम्हें सदियां लगी है यहां
तक पहुंचने में।
स्त्रीत्व, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता
स्थापित करने में।
हजारों लाखों
हड्डियां रक्त से सनी है।
इतिहास आज भी उनके
नाम से ही धनी है।.-
मे ज्ञान मे ब्राह्मण हूं ,
रणभूमि पर क्षत्रिय हूं,
व्यवसाय व्यापार कार्य मे वैश्य हूं
और सेवा करने में शूद्र हूं ।-
यदि कोई शूद्र ब्राह्मण के विरुद्ध हाथ
या लाठी उठाए, तब उसका हाथ कटवा
दिया जाए और अगर शूद्र गुस्से में ब्राह्मण
को लात से मारे, तब उसका पैर कटवा दिया जाए।
8/279-280-
शूद्र लोग बस्ती के बीच में
मकान नही बना सकते।
गांव या नगर के समीप किसी
वृक्ष के नीचे अथवा श्मशान
पहाड़ या उपवन के पास
बसकर अपने कर्मों द्वारा
जीविका चलावें ।-
इन चारो में से कुछ भी होने पर पूर्ण समाज का विनाश निश्चित हैं।
१. ब्राह्मण को अहंकार,
२. क्षत्रियों की बेलगाम ललकार,
३. वैश्यों को नुक्सान
और
४. शूद्रों का अपमान।-
मैं ठाकुर के वंश में पैदा हुआ,जिस परिवार की पहचान जमींदारों की रही,लेकिन वर्ण व्यवस्था को छोड़ बचपन से ही शूद्र सी मेहनत की,उसी का प्रतिफल कि मेरे पिता को समाज, जमींदारी, पूर्वजों की सम्पति से नहीं, मेरे नाम से जानते हैँ, मुझे उनके नाम से नहीं।
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कभी-कभी नाम का अर्थ कुछ होता,
लेकिन व्यवहार अलग, जैसे नाम है
रूद्र,लेकिन व्यवहार लिए मानो 'छुद्र'-
" सूचना : शूद्र निषेध "
" शूद्र ही मंदिर की नीव बनाए ,
उन्ही हाथों से इंटो पे इंटे चढ़ाएं ,
मंदिर को गगनचुम्बी नभ तक पहुंचाए ,,,
कला-कृतियों से मंदिरो का मान बढ़ाए ,
फिर क्यू वो मंदिर की सीढी को ना छु पाए ,
गर्भग्रह तक कैसे पहुंचा जाए ?
उसी मंदिर प्रांगण की दिवार पर एक दिन सार्वजनिक सूचना मे
वह " शूद्र निषेध " लिखा पाए ,
क्या यही हे धर्म ???
इस सभ्य बात को ईश्वर से कोंन पूछ कर आए ???
शूद्र ही मंदिर की नीव बनाए ,
उन्ही हाथों से इंटो पे इंटे चढ़ाएं ...
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