समाज ने कहा तुम कमजोर हो,
स्त्री ने मान लिया।
राजा ने कहा तुम रंक हो,
प्रजा ने मान लिया।
पंडित ने कहा तुम अपवित्र हो,
शूद्र ने मान लिया।.
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मुझे समाज, राजा और पंडित से
कोई शिकायत ही नहीं।
मुझे स्त्री, प्रजा और शूद्र से
कहना है,
चौकस रहो!
तुम्हें सदियां लगी है यहां
तक पहुंचने में।
स्त्रीत्व, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता
स्थापित करने में।
हजारों लाखों
हड्डियां रक्त से सनी है।
इतिहास आज भी उनके
नाम से ही धनी है।.-
प्रेम अगर पायथागॉरस प्रमेय
सा कुछ होता....
तब दूरियां भी ज्ञात होती
और प्रेम का आधार भी
और हम कोई ना कोई जुगाड़ लगा कर
उसे सिद्ध भी कर लेते...
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पूछा तो लड़की और लड़के दोनों से जाता है कि
कहां जा रहे हो..?
लेकिन जब लड़की कहती है दोस्त से मिलने
तो उससे एक और सवाल पूछा जाता है
कौन सा दोस्त...-
मेरे दिमाग के अंदर उतावलापन है, ये समय के साथ हलाकि कम हो गया है। लेकिन जब भी विक्रम बत्रा और महेन्द्र सिंह धोनी ये दोनों नाम जब भी सुनता हूँ, रुक जाता हूँ वहीं। और ये आज से नहीं जिसने भी मेरी मोटिवेशनल स्टोरीज पढ़ी हो कभी उसमें दो ही नाम मिलेंगे MS Dhoni और विक्रम बत्रा...
माना की जनाब इश्क़ मे बर्बाद हो,
लेकिन जान ही देनी है तो देश के लिए दो..-
मुझमें विशाल हिमालय बसा
मुझमें पावन गंगा भी
मुझमें बसा विन्ध्याचल
मुझमें बहती है नर्मदा भी
मुझमें जन्में कृष्ण, राम
मुझमें बुद्ध और सांई भी
मुझमें रहते हिन्दू मुस्लिम
मुझमें सिक्ख इसाई भी
अब भी मुझे ना पहचान पाया
कौन हूँ मैं ये ना जान पाया
तो फिर मेरे ग्रन्थ पुरान देख
मेरे वीरों का बलिदान देख
मेरे वेदों का ज्ञान देख
यहाँ की वीरांगनाओं का अभिमान देख
देख नभ मे तिरंगा मेरा छाया है
चारों और दृष्टि कर, मेरा ही तुझपे साया है
पाक, बांग्लादेश मुझसे निकले ये सब है
तक्षशिला, नालंदा मुझमें बने ये सब है
मैं इंडिया, मैं हिंदुस्तान, मैं ही भारतखंड हूँ
मैं भारत, मैं जम्बूद्वीप, मैं ही आर्यावर्त हूँ...-
मोहब्बत के दौर मे मिलना
बिछडना लगा रहता है
पर उस दौर कि नदियों मे
बस इश्क़ बहता है..-
इश्क़ मे खामोशियाँ अच्छी नहीं लगती
तुम्हारे चेहरे पर उदासियाँ अच्छी नहीं लगती
एक अरसे से बस तुझे मांग रहा हूँ
क्यूँ खुदा को मेरी अर्जियाँ अच्छी नहीं लगती
पता नहीं ऐसी क्या कशिश है तुझमें
आज कल तेरी जुदाइयाँ अच्छी नहीं लगती
तू लाख लड़ झगड़ ले मुझसे, लेकिन कुछ तो बोल
दिल को तेरी चूप्पीयां अच्छी नहीं लगती
कब तक ऐसे नाराजगी जाहिर करते रहोगे
मुझे तेरी ये रुसवाईयाँ अच्छी नहीं लगती...-
चाहे कितना भी उदास रहूँ
उसकी मुस्कान से दिल को आराम मिल जाता
वो भी चाय ले कर छ्त पर आती
मैं भी किताब ले कर उसके पास बैठ जाता-
उसके बालों की खुशबु सालो तक मेरे हाथ रही
वो दूर रहकर भी हमेशा मेरे पास रही
मिलने की कोशिश हम दोनों की थी
लेकिन ना वक़्त हमारा था, ना किस्मत हमारे साथ रही-
बरसे उसमें इश्क़ ही बस
ऐसी कोई तो बरसात हो
बैठकर सुकून से सवांरु जुल्फें तेरी
ऐसी कोई तो रात हो
हर वक़्त जाहिर बस मैं ही करूँ मोहब्बत
तू भी करता है मोहब्बत मुझसे
ऐसी कोई तो बात हो...-