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जो अपनी समझ से विचार कर
भूत भविष्य और वर्तमान में लिया
कोई भी फैसला कभी ग़लत ना हो
हां वहीं समझदारी है।-
मुझे कुछ माँगना होगा तो मैं ,
सब्र, शांति, संतुष्टि माँगूंगी ...
मुझे लगता है कि अगर ये तीन तत्व मेरे
साथ रहेंगे तो मै चाहे जीवन के जिस भी ,
" दशा या दिशा " में रहूं खुश रहूंगी !!
क्योंकि मुझे किसी से ज्यादा नहीं चाहिए
चाहे वह प्यार हो , सम्मान हो
या समय ही क्यों ना पर हाँ जितना मेरे हिस्से का है उसमें से थोड़ा भी कम नहीं चाहिए ...
अब तक तो एक बात समझ आ गयी जीवन में
"sabar 💫" करना आना चाहिए क्योंकि चाहे कोई भी हो वक्त के साथ सबको सबकुछ मिलता है हाँ थोड़ा कम या ज्यादा हो सकता है पर उदास नहीं होना चाहिए क्योंकि अगर कम मिला तो ज्यादा भी मिलेगा और जिसको ज्यादा मिला उसको उसको कम भी मिल सकता है क्योंकि
देने वाला सबको उसके हक मे जितना होता है देता है तो खुश रहो ना यार जिंदगी ही है
रुलायेगी तो हसायेगी भी !!💛💫
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स्थिर बिना किसी 'भाव' के , स्थिर कहा रह पाओगे
चंचल ये 'मन' चित है बड़ा , बचकर कहा तुम जाओगे-
चल दिया
सबकी नजरों से दूर
खुद को कर दिया,
यूँ तो सितम हैं बस
मंजिल पाने का,
वरना सादगी में रहना
हमारा ही काम हैं।।
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व्यक्ति का धर्म तप, करुणा, क्षमा,
व्यक्ति की शोभा विनय भी, त्याग भी,
किंतु, उठता प्रश्न जब समुदाय का,
भूलना पड़ता हमें तप त्याग को।
त्याग तप करुणा क्षमा से भींग कर,
व्यक्ति का मन तो बली होता मगर,
हिंस्र पशु जब घेर लेते हैं उसे,
काम आता है बलिष्ठ शरीर ही-
अवांछित तत्वों
और परिस्थितियों
से दूर जाकर
शांति तलाशना...
अपने भीतर की
शांति से अनभिज्ञ
एवं ऊर्जा से
अपरिचित होना
ही होता है ना.....-
रात... सारे तारे मिलकर आसमां खूबसूरत बनाते हैं
कई जुगुनू एक साथ उड़कर अंधेरे को सजाते हैं,
...कोई एक सोचे के मैं ही हूँ, मुझसे ही यह दुनियाँ है,
तो यह केवल उसका भम्र है,
कहते हैं किसी के होने या ना होने से क्या फ़र्क पड़ता है...
पऱ फ़र्क पड़ता है जनाब... सृष्टि का एक छोटा सा
कण भी अपने होने का महत्ब रखता है,
यूँ तो "प्रभु" की बनाई इस सृष्टि में अनाकारण कुछ भी घटित नहीं होता,पऱ फ़िर भी इस दुनियाँ को खूबसूरत बनाये रखने में सबका ही सहयोग अनिवार्य है,
ईष्वर के सिवा, एक अकेला मनुष्य, देश या धर्म...
इस पूरी सृष्टि का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता
मिलके सारा जल एक साग़र का निर्माण करता है
...कोई एक बूंद पूरे साग़र का दायित्व नहीं करती!!-
पूर्ण है वह, पूर्ण है यह
पूर्ण से निष्पन्न होता पूर्ण है।
पूर्ण में से पूर्ण को यदि लें निकाल
शेष तब भी पूर्ण ही रहता सदा।
ओउम् शान्ति, शान्ति, शान्ति।-