शिव तुम बनवासी, नहीं आई तुम में
नगर की चालाकी, रहे तुम आदिवासी-
हे जग जननी हे माँ दुर्गा
अश्रुधार भरी आंखों से
नवरात्र मनाऊँ मैं कैसे
उस माँ को संताप मिला
मैं कैसे मुस्काउं माँ
कन्या भ्रूण हत्या भी की
निर्भया भी मसली थी
पर उस माँ का तो बालक था
बालक को भी भोग लिया ???
शौचालय में रक्त रंजित किया ???
माँ तू भी है
माँ वो भी है
माँ मैं भी माँ..
कुछ तो कर योजना
शिव शंभु को तू बोलना
खप्पर खड़ग ले हाथ में
शिव का त्रिशूल भी थाम ले
संहार कर माँ पाप का
प्रद्युम्न ना फिर कोई मरे
प्रद्युम्न ना फिर कोई मरे
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कैसे करुँ शुक्रिया अदा मैं तेरा
थाम लेता है हर बार तू
जब-जब सघन होता है अँधेरा
(शेष अनुशीर्षक में...)
~दीपा गेरा
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मेरे भोले भाले शंभु की लीला भी अति न्यारी,,,
कभी प्रलयंकारी रूप दिखाते कभी बाल ब्रम्हचारी,,-
आप के भक्त हैं एक से बढ़कर एक है बड़े निराले,
उस सब से मेरा क्या लेना देना हम तो हम खुद को मानूं
आपका खास। हम सा अनाड़ी का आपको खिलाड़ी मानूं।
आप से ही मेरी पहचान आपसे ही हम धरती पर है थमी।
प्रेम बोलूं या भक्ति बोलो में इतनी सी अभिलाषा रम जाऊं।
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