भूकम्प की तीव्रता मध्यम थी। फिर भी उसके घर की कच्ची दीवार ढह गई थी, जिसमें दब कर मारे गये उसके माता पिता और छोड़ गये थे उसे कच्ची उम्र में पकने के लिये। शहर में रहने वाले एक दम्पति ने उस अनाथ को अपने साथ ले लिया। गाँव वालों ने उन्हें दयालु समझा। शहर वालों ने उन्हें भाग्यशाली। उनके बड़े से फ्लैट में उसे मिला बाल्कनी का छोटा सा कोना। घर के काम निपटा कर वो घंटों उस बाल्कनी में खड़ी रहती। चिलचिलाती धूप, तूफानी बारिश या कड़ाके की ठंड, उसे किसी से कोई शिकायत नहीं होती। उसके अंदर सूरज से अधिक ताप था या कोई भयंकर तूफान का शोर, उसकी खामोशी कुछ भी बयान नहीं करती थी। जिसका सब कुछ बिगड़ चुका हो, प्रकृति और क्या बिगाड़ सकती थी। वो सूनी आँखों से निहारती रहती थी उस विस्तृत आसमान को, मानो ढूँढ रही हो अपने माता पिता को या उस सृष्टिकर्ता को, जिससे करने थे उसे अनेकों सवाल। मैं नहीं जानता क्या लिखा है उसके भाग्य में। मेरी कलम की स्याही भी इससे ज्यादा कुछ नहीं लिख पाई उसके बारे में। सूरज उग चुका था, मगर छँटा नहीं था उसके जीवन का अँधेरा।
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