जर्जर   ('जर्जर'👶)
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Joined 26 April 2020


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13 HOURS AGO

नींद गहरी लग चुकी है तुम को 'जर्जर'
पर खुलेगी जब बहुत अफ़सोस होगा

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28 SEP AT 15:11

उसने मुझको इक ख़त भेजा है
कितना मीठा शरबत भेजा है

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26 SEP AT 21:22

बहुत कम रोता हूँ मैं इसलिए भी अब
मुझे अब हिज्र का ख़र्चा बचाना है

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23 SEP AT 19:57

इस बेचैनी इस डर का मतलब क्या है
आख़िर मेरे भीतर का मतलब क्या है

एक तरफ है उल्फ़त, नफ़रत दूजी ओर
एक साथ गुल-ख़ंजर का मतलब क्या है

क्यों हर लम्हा दिल पर परबत गिरते हैं
आँख से बहते पत्थर का मतलब क्या है

औ'र मौसम बस जैसे-तैसे गुज़र गए
बारिश में समझा घर का मतलब क्या है

मुझको अब ज़ीस्त-ए-उल्फ़त जी लेने दो
मत समझाओ करियर का मतलब क्या है

नाम अपना तुम बेहतर भी रख सकते थे
मगर तख़ल्लुस 'जर्जर' का मतलब क्या है


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16 SEP AT 22:36

तजरबे को आज़माना चाहता हूँ
इश्क़ का नक़्शा बनाना चाहता हूँ

हिज्र ग़म तन्हाइयों के इत्र से मैं
रूह पर ख़ुशबू लगाना चाहता हूँ

एक पुख़्ता याद ही काफ़ी है अब तो
और सब कुछ भूल जाना चाहता हूँ

ख़्वाहिशें तोते से बगुला बन रहीं हैं
और मैं मछली कमाना चाहता हूँ

जो ग़ज़ल मैंनें अभी लिक्खी नहीं है
बस उसे ही गुनगुनाना चाहता हूँ

फ़ुर्सतें ही फ़ुर्सतें हैं पास मेरे
मैं कोई करतब दिखाना चाहता हूँ
आसमानों में हैं कितने तारे 'जर्जर'
मैं तुम्हें गिनकर बताना चाहता हूँ

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6 SEP AT 20:41

आपको जब सोचता हूँ हू ब हू दिखते हैं मुझको
और अजब है आपको मैंने कभी देखा नहीं है

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31 AUG AT 11:17

"""पेट का चाँद"""

एक बुझा हुआ चाँद है
पेट के आसमान पर
अधूरा उगता है

एक लंबी छाया है,
जो अमीरी की चौखट पर भी
कभी नहीं सिमटती

एक धधकती आग है
रोटी को देखते ही
और भड़क उठती है

रोटी का टुकड़ा
ज़िन्दगी और मौत के बीच
खड़ा हुआ एक पुल है

भूख
पेट का चाँद है।

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3 AUG AT 17:59

बह रही इक डाइरी में क़ैद हैं
परबतों के ग़म नदी में क़ैद हैं

भर गयी है दौलतों से कोठरी
पर समंदर तिश्नगी में क़ैद हैं

कल तिरी मौज़ूदगी इक जश्न थी
अब तिरी ही बे-रुख़ी में क़ैद हैं

इस दफ़ा ख़त में फ़कत धब्बे मिले
यानी बातें ख़ामुशी में क़ैद हैं

क़ब्र पर गुल हैं मगर ख़ुश्बू नहीं
ज़ख़्म अब भी ताज़गी में क़ैद हैं

झूठ परदा ख़ौफ़ शोहरत बेबसी
कितने चेहरे आदमी में क़ैद हैं

रौशनी की जुस्तुजू में उम्र भर
हम भी 'जर्जर' तीरगी में क़ैद हैं

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3 AUG AT 16:48

इक अज़ब सी डायरी में क़ैद हैं
मेरी ग़ज़लें छिपकली में क़ैद हैं

इस से बेहतर और क्या होगा ज़नाब
आप उनकी गैलरी में क़ैद हैं

सीरतों पर परदा डाले कुछ रईस
इक तवायफ़ की गली में क़ैद हैं

दौर वो था ,जब भगत आज़ाद थे
अब के लड़के आशिक़ी में क़ैद हैं

मेरी बेटी से महकता है मकाँ
ख़ुशबुएँ नन्हीं कली में क़ैद हैं

थक गया है शम्स, जुगनू सो गए
अब उजाले तीरगी में कैद हैं

सोता है दफ़्तर हमारे साथ ही
हम भी 'जर्जर' नौकरी में क़ैद हैं


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29 JUL AT 22:05

जिस गुलशन के गुल भी कल काँटे लगते थे
अब उसके काँटे भी मुझको गुल लगते हैं

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