जर्जर   ('जर्जर'👶)
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Joined 26 April 2020


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3 AUG AT 17:59

बह रही इक डायरी में क़ैद हैं
परबतों के ग़म नदी में क़ैद हैं

भर गयी है दौलतों से कोठरी
पर समंदर तिश्नगी में क़ैद हैं

कल तिरी मौज़ूदगी इक जश्न थी
अब तिरी ही बे-रुख़ी में क़ैद हैं

इस दफ़ा ख़त में फ़कत धब्बे मिले
यानी बातें ख़ामुशी में क़ैद हैं

क़ब्र पर गुल हैं मगर ख़ुश्बू नहीं
ज़ख़्म अब भी ताज़गी में क़ैद हैं

झूठ परदा ख़ौफ़ शोहरत बेबसी
कितने चेहरे आदमी में क़ैद हैं

रौशनी की जुस्तुजू में उम्र भर
हम भी 'जर्जर' तीरगी में क़ैद हैं

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3 AUG AT 16:48

इक अज़ब सी डायरी में क़ैद हैं
मेरी ग़ज़लें छिपकली में क़ैद हैं

इस से बेहतर और क्या होगा ज़नाब
आप उनकी गैलरी में क़ैद हैं

सीरतों पर परदा डाले कुछ रईस
इक तवायफ़ की गली में क़ैद हैं

दौर वो था ,जब भगत आज़ाद थे
अब के लड़के आशिक़ी में क़ैद हैं

मेरी बेटी से महकता है मकाँ
ख़ुशबुएँ नन्हीं कली में क़ैद हैं

थक गया है शम्स, जुगनू सो गए
अब उजाले तीरगी में कैद हैं

सोता है दफ़्तर हमारे साथ ही
हम भी 'जर्जर' नौकरी में क़ैद हैं


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29 JUL AT 22:05

जिस गुलशन के गुल भी कल काँटे लगते थे
अब उसके काँटे भी मुझको गुल लगते हैं

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27 JUL AT 16:28

ज़ख्म से लाचार आँखें
बन गईं अख़बार आँखें

बह रहे हैं ख़्वाब सारे
हो रहीं बेकार आँखें

इश्क़ तुमको भी है मुझसे
कर रहीं इज़हार आँखें

बेचती हैं फूल भी और
बेचती हैं ख़ार आँखें
दिन ब दिन होने लगी हैं
ज़ीस्त का बाज़ार आँखें

रूह घायल हो रही हैं
मत करो तलवार आँखें
नज़रों में तहज़ीब रक्खो
रक्खो पर्दा दार आँखें

दिल ग़ज़ल है,वज़्न अश्क,और
कहती है अश'आर आँखें
ज़ीस्त इक पिक्चर है 'जर्जर'
और हैं किरदार आँखें

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25 JUL AT 16:34

इक इंसाँ जो नहीं हुआ मेरा जर्जर
फिर भी उसको खोने से मैं डरता हूँ

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23 JUL AT 19:22

दीवारों से गिरते हैं आँसू
बारिश में रोता है घर मेरा

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7 JUL AT 22:02

इस उमीद से ही मैं साँसों में जाँ भरता हूँ
"जो भी होता है अच्छे की खातिर होता है"

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24 JUN AT 20:26

कैनवास पर कविता..

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5 JUN AT 20:05

इक ख़िताब और हुजूम लाशों की
इस बरस जीतकर भी हार हुई
___जर्जर

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25 MAY AT 23:33

अब पकड़ना बहुत ही मुश्किल है
आ गया हूँ मैं ख़ुद से दूर इतना

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