बेशक़ आभासी दुनिया के ज्ञानियों की संख्या में कमी हो जाती।दुनिया के सारे ज्ञान विज्ञान के लिए आज गूगल का प्रयोग बहुतायत में होता है।किंतु गूगल की भी सीमाएं हैं।गूगल का सारा ज्ञान निर्भर है उपयोगकर्ताओं पर।आपने हमने जो भी इनपुट किया वही गूगल का डाटा बेस है।सबसे बड़ी बात गूगल पर फेक और सतही ज्ञान बहुतायत में डाला जाता है।जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश विषयों पर उपयोगी तथ्यों के साथ बहुत सी अनुपयोगी व त्रुटि पूर्ण बातें भी मिलती हैं।जिससे विषयांतर होना सहज है।
क्रमशः अनुशीर्षक में
सिद्धार्थ मिश्र-
*रसायन से बनती है
*जीव विज्ञान से उत्पन्न होती है
*भौतिक से अनुभव हैं
*गणित से हिसाब इसके
*भूगोल सी यात्रा इसकी
कभी पठार तो कभी समतल
*ज्यामिति भी अपना लेती है
रेखा सी दिखती है सीधी
त्रिभुज चतुर्भुज वर्ग ना जाने
कितने आकारों से गुजरती हुई
अंत मैं वृत्त पर घूमती है
*इतिहास सी सहेजे रखती है
सभी बातों को बनाकर यादें अच्छी और बुरी
इमारत भी निशनियों की बनाकर रखती है
* नागरिक शास्त्र से चलती है
*राजनीतियाँ भी सीख जाती है
*अर्थशास्त्र के चारों ओर तो
गृह की भांती चक्कर काटती है
*कृषि विज्ञान है जरुरत इसकी
*व्यवस्था की सभ्यता भी सीखनी है
*हिंदी अपनाना नही चाहती
*अंग्रेजी से जूझती रहती है
*भला हो सीख लेती कभी कभी कंप्यूटर
जिस से सब विषयों से सामन्ज्य कर लेती है
*पर जो ना पड़े नैतिक शास्त्र
सब मेहनत बेकार कर लेती है
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ये तब होता है,
जब किसी की बात में वजन होता है।
और उस वजन के दबाव से,
हमारा पुर्वाग्रह दब रहा होता है।
फिर हम बात को गौण कर,
विमर्श उस व्यक्ति के चरित्र पर ले जाते हैं,
और इस तरह से
हम बात के वजन से मुक्त हो जाते हैं ।
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कौन कहता है दर्द बेजुबां होते है
जख्म और दरख्त सूखने के बाद भी बयां होते है
बेशक़ कई बार अश्क़ो से धोकर
जलाएं है चिराग तेरी यादों के
मगर शोलों के कहां अपने
कहां पराये होते है-