Kumar Saroj   (©Dr.Writer|डॉ० राइटर)
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"मेरी बातें जो आपकी हैं"
Joined 27 January 2018


"मेरी बातें जो आपकी हैं"
Joined 27 January 2018
21 DEC 2024 AT 22:30

ले चल उस ओर जहाँ अपनों की भीड़ हो
पर अपनों की भीड़ होती कहाँ है!
अपने तो बड़े मुश्किल से 'अपने' होते हैं
कहते हैं सब तो अपने हैं
पर क्या वाकई! सब अपने 'अपने' होते हैं!
अपनों का होना जैसे कोई सपना होता है
अपने भी तब 'अपने होते हैं
जब हम ख़ुद ही 'अपने' होते हैं
ख़्वाहिश है ख़ुद से ख़ुद को मिलाने की
अपनेपन को 'अपना' बनाने की।
उम्मीद ख़ुद से ख़ुद को मिलने की है
अपने को 'अपना' बनाने की है।

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1 DEC 2024 AT 20:01

फ़रेबी वही है जो...
वही जो अनकही बात सुन लेता था
वही जो बेहतरीन बना करता था
वही जो लब्ज़ों का खेल खेलता था
वही जो दिल को बहलाता था
वही जो पिद्दी सी बात पे हँसता था
वही जो बेवजह में वज़ह दे जाता था
वही जो अनजाने में भी अपना सा था
फ़रेबी वही है जो...
वही जो सारी रात जगने की वज़ह देता था।

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19 NOV 2024 AT 22:06

अब मेरी रातें गुज़रती नहीं
बस ढल जाया करती हैं।

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19 NOV 2024 AT 21:01

तेरे मिलने की ख़्वाहिश कब की छोड़ दी थी मैंने
बस तेरे पास होने को न छोड़ पाए हम।

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16 NOV 2024 AT 20:39

झूठ इतना ही बोलना चाहिए
कि वो सच के क़रीब हो।

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21 OCT 2024 AT 1:03

तेरे हिज़्र में आँखें समंदर सी हैं
बस इतनी-सी मोहब्बत है तुमसे।

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20 OCT 2024 AT 16:54

तेरे ख़यालों के अब्र से निकलना मुश्किल-सा है।
तेरे सुकूँ की ठंडी छाँव से निकलना मुश्किल-सा है।
कई क़वायदें करके देख लिए मैंने,
ख़ुद को समेटा, ख़ुद को मनाया
पर अब इन बेख़यालियों में भी सब्र सा है।

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16 OCT 2024 AT 23:53

कभी 'अफ़रोज़' बना
कभी 'इमरोज़' बना
तू जो न कही
वो मैं 'रोज़' बना

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12 OCT 2024 AT 21:09

किस्से- कहानियाँ,
बनाता-बिगाड़ता हूँ मैं।
थमे उँगलियों को उठाता-बिठाता हूँ मैं।
कोई न कहे कि
तालीम अधूरी रह गई मेरी
इसलिए
फ़िर लिखता -मिटाता जाता हूँ मैं।

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14 SEP 2023 AT 22:51

'आगे' सुन लो पहिले, फिर आगे की बात करेंगे
और फ़िर उससे भी 'आगे' की बात करेंगे
'फ़िर' सुन लो पहिले।

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