"भगवान" से यदि न्याय मिलता
तो "न्यायालय" नहीं होता,
"सरस्वती" से यदि विद्या मिलती,
तो "विद्यालय" नहीं होता,
"दुआओं" से यदि मरीज ठिक होता
तो "औषधालय" नहीं होता,
बिना "कर्म" किए यदि भाग्य जागता
तो दुनिया में "कमेरा" नहीं होता..!!!-
विद्या देवी,
देवी की विद्या के लिये
विद्या की देवी की
कर रही हैं अराधना।-
साधारण बाते
हर एक उस इंसान की,
जिसने
विद्या की गहराई को
नही जाना
या
जानने की कोशिश नही की-
करते प्रणाम झुका कर शीष,
सभी को देती वो आशीष।
मात शारदे की वो छाया,
क्या सखि विद्या,नहीं सखि माया।-
माघ शुक्ल के पंचमी तिथि को, आगमन वागेश्वरी का
ऋतुराज समाहित बसंतोत्सव, आदिशक्ति रूपेण च।।
चतुर्भुजी देवी यथा वरहस्त , वीणापाणि जपमाला
विद्यादायिनी हंसवाहिनी माता, हिरण्यज भार्या।।
श्वेतपद्मासनावाग्देवी चर-चराचर में संचार करने वाली
देवी सरस्वत्यै प्रकटोत्सव प्रणिपात सहितम् नमामि।।
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मुझको अपनी विद्या पर, अब नहीं विश्वास
तुम्हारे आने जाने का, हुआ न पूर्वाभास-
ज्ञान सर्व व्यापी ज्ञान सर्व धर्म,
ज्ञान का नहीं कोई मज़हब,
ज्ञान का नहीं कोई भेद।
ज्ञान जीवन का मार्ग है,
ज्ञान अंधकार में भी प्रकाश है,
ज्ञान हमारी रचना,
ज्ञान जीवन का स्वरूप है।
ज्ञान सर्वोपरी ज्ञान दिशा निर्देशक,
ज्ञान से इंसान ज्ञान से पहचान।
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जानना और समझना सब चाहते हैं
लेकिन कुछ हालातों से मजबूर कुछ
परिस्थितियों के मारे होते हैं....
और अगर आपने विद्या की जगह शिक्षा
का चुनाव किया होता तो ज्यादा बेहतर होता...-