उत्तराखंड की वादियां और तुम्हारा प्यार दोनों एक जैसे लगते हैं,
इनकी ख़ूबसूरती में, मैं अक्सर विलीन हो जाती हूँ।-
वादियाँ भी बेजान नजर आती है
जब तेरे चेहरे की मुस्कान नजर नही आती है
चाय भी फीकी पड़ जाती है
जब ये तेरे होठों से नही लग पाती है ।-
सुबह की खूबसूरत वादियाँ और ज़हन में तेरा खयाल,
कोहरे की सफेद चादर में लिपटा आफ़ताब हो जैसे !-
ये धुआँ-धुआँ सी बेरंग फ़िज़ा
जमीं में घुला-घुला सा आसमा
बर्फ़ का लिहाफ़ ओढ़े पर्वत ठिठुरता
उसपर, छुप्पन-छुपाई खेले मंजिल-रास्ता
भागते मन से थका-थका तन कह रहा
आँखों में भर लें समा, साँसों को सुस्ता
आ, खुद से खुद का त’आरूफ़ करा
दो पल ठहर, दो पल जी ले ज़रा ..
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पहाड़ों से उतरती धूप पर जरा गौर करना
जिस्म भी तेरा उसी मानिंद वजूद रखता है,
वादियाँ भी जवां नहीं रहती हर एक मौसम में
निशां नहीं मिलते जवानी के भी एक उम्र के बाद !
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शहर यह शोर बहुत
करता है अक्सर!!
इस शोर में छुपी खामोशी
को देखा है कभी!!
पहाड़ों की वादियाँ
खामोश रहती हैं अक्सर!!
इस खामोशी में छुपे
शोर को सुना है कभी!!
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बारिश की बूँदें जब
गिरिं प्यासी धरती पर!
महक उठी फिर जमीन
मोहब्बत की महक से!!
बरसों बाद मानो जैसे
मिलन दोनों का हुआ हो!
ख़ुशनुमा हो गया फिर
समा दोनों के मिलन से!!
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ज़हन में तुम्हारी तस्वीर
उस पर ख़ूबसूरती इन पहाड़ों की।
हवाओं ने फ़िर गले लगाकर
इस दिल को और परेशान कर दिया।।
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तेरा इश्क़ वादियों में उठता धुआँ सा हैं..!
मेरा इस अधूरी आग में जल रुआँ रुआँ रुआँसा हैं..!!-