मेरी प्रिय डायरी में
मेरे सारे राज ।
हर दिन का वर्णन में उस में करती ।
जब कभी उदास होती
अपना जीवन ही पड़ने बैठ जाती ....
लगता ऐसे की सब फिर से हो रहा मेरे आस-पास ...
मेरी डायरी में है
मेरे सारे राज ।।-
मैंने लिखना शुरू किया
क्योंकि मैं दर्द में था और
मैं बस इसका वर्णन करना चाहता था।
लेकिन कुछ वक़्त के बाद मुझे एहसास हुआ
कि जिस दर्द का मैं वर्णन कर रहा था वह व्यर्थ था।
क्योंकि यह मुझे अंदर से नष्ट कर रहा था और
मुझे एक जानवर में बदल रहा था।
मैंने सोचा कि प्यार वह चीज़ है जो मेरे लिए नहीं बनी है।
इसलिए मैंने कविताओं के माध्यम से अपनी दुनिया बनाई।
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जो किया है वो प्यार नहीं समर्पण है मेरा ,
जो लिखती हूं वो शब्द नहीं वर्णन है तेरा ।-
तु जीवन माझे
तु संगीत ही
तु रात्र माझी
अन दिवस ही..
तु श्वास माझा
तु गंध ही
तु क्षितिज माझे
अन तिमीर ही..
तु प्रेम माझे
तु हृदय ही
तु पाऊस माझे
अन चिंब ओले मन ही..
तु फुल माझे
तु कळी ही
तु विश्वास माझा
अन धडधड ही..
तु तुच फक्त
तु माझी देवारती
तु शब्द माझे
अन तु माझे विश्व ही..-
मेरी कल्पनाओं का साकार रूप हो
मेरे मन में उठते द्वंद का चित्रण हो
अनकही मेरी बातों का पूर्ण वर्णन हो
एक बहती सरिता हो मेरे जीवन की
खुशी और गम से ओतप्रोत मेरी रचना हो
छंद और शायरी का सम्मिश्रण हो
मेरे जीने की पूर्ण आस हो
मेरे भावों का सम्पूर्ण आकाश हो
एक कवि मन का अटूट विश्वास हो
मन में उपजे भावों से होती हुई
कागज के पन्नों पर बिखर जाती हो,
मैं साधक तुम साधना हो मेरी
ए कविता ! मेरी प्रेरणा हो तुम !
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ये जो कुम्भकार है जिसने ये धरा बनाई है....
प्रकृति ने इसमें अपनी छवि बिछाई है....
आंखो में समंदर, केशो में काली घटा छाई है....
होंठो में गुलाबी पंखुड़ी सजाई है.....
कंठ पे कोयल....
पैरो पर नदियां इठलाई है......
नज़र ना लग जाए, कही इसीलिए कारी बदरी छाई है....
*नारी* के नाम से ये उसने छबि बनाई है.....
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छोटी सी बातों पर शोर करना मेरी आदत नहीं
गहरे जड़ के बरगद का पेड़ हूँ
दीवारों पर उगने वाला पीपल नहीं-
प्यास बुझाता है कब सावन?
कसमसा के रह जाता है मन।
यादें ख़ूब समाईं इसमें,
फिर भी सूना लगता आंगन।
खिड़की में से छन कर आतीं
भोर की किरणें नाचें छन-छन।
चिड़िया चीं चीं से करती है
भोर का सबसे सुंदर वर्णन।
भोली मुस्कानों में अक्सर
ज़ाहिर होता है अपनापन।
(दिनेश दधीचि)-
नवरात्रों की प्रातः बेला
कुछ ऐसी लगती है
अमवा की डारी पर
काली कोयलिया कू कू करती है
आसमां भी मां के
प्यार की चूनर जैसी दिखती है
इनकी छत्र छाया में
दुनिया बसर करती है
सूर्य भी मां की बिंदिया लगती है
नकारात्मकता को दूर कर देती है
सारा संसार तुझमें समाहित लगता है
तेरा विकराल रूप दानवों पर भारी पढ़ता है
इस प्यारी सी बेला में मां
अपने लालों को ये आशीर्वाद दे दे
अपने भक्तों का बेड़ा पार कर दे
हमारी सभी भूल चूक माफ कर दे
सुखी संसार कर दे
जय माता दी 🙏🙏
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[1]
उस लाल फूल को गूँथ रखा था यूं कि उसी के केश पर खिला हो। घुंघराली सी लत्तियों के बीच एक चटकता लाल फूल।
जंगली नहीं जंगल ही कहते थे उसे और अक्सर लोग निकलते पर्यटन करने,रास्ते निकालने। पर कहते हैं, कोई पर्यटक नक्शा बना नहीं पाया आज तक।
उसके लाल फूल को उसकी बदचलनी का प्रतीक मानते, असभ्यता का संकेत। फिर भी जाते सूंघने और कहते किसी ने बताया नहीं कि फूलों से उसकी खुशबू आती है।-