बहोत नासमझ है मेरी मोहब्बत
अक्ल का बोझ उठा नहीं सकती।।-
हम ढूंढ़ते ही रहे... शहर भर में उसे..!
अगर पूछते हम उसके बारे में किसी से..!
तो क्या पूछते..??-
उफ्फ ! कितना नापते तौलते हो,
खुद को क्यूँ न्यायाधीश समझते हो?
उसकी सोच,इसकी सोच,मेरी सोच..
इसी में उलझे रहते हो?
निष्कर्ष क्या निकला,क्या ये बता
सकते हो ?
पूर्ण रूपेण कभी किसी को नहीं जान
सकते हो ..
बस,खुद के हिसाब से एक कहानी बना
लेते हो..
सच तो ये है, कि इंसान परिस्थितियों का
दास है ..
जब जैसा होता है वो उसी अनुरूप व्यवहार
करता है
तो एक काम करो पहले खुद को संभालो...
और ये नापने तौलने की आदत अपनी
बदल डालो...
-
कहने दो, जो कहते हैं लोग,
अपना क्या जाता है ??
ये तो वक़्त-वक़्त की बात है,
और वक़्त सबका आता है।-
Log kya kahenge is not a qualifying criteria
rather just an excuse to create hindrance.-
लोग क्या कहेंगे,
इस डर को छोड़ दो,
ये सारे मुसाफ़िर है,
तेरे रास्ते के......
जिस दिन तेरी,
उन्नति के रास्ते चमकेंगे,
उसी उन्नति क़ी रोशनी में,
ये भी तेरे संग......
फिर से चल पड़ेगे!!!!-
बुराई का आलम देखिये,
जिसका नाम भी नहीं लेना चाहते हैं।
वक़्त बर्बाद कर रहे हैं लोग,
ख़्वाह-मख़ाह उन्ही के चर्चो में।।-
लोग क्या कहेंगे
लोग कुछ नहीं कहते
लोगों के बहाने...
कुछ भी कहने वाले
अपने ही होते हैं-