आहूत हो रही हैं
भाव समिधाएं
नित्य
लेखनी यज्ञ में
कभी चिंगारियां....
कभी धुंआं... धुंआं !!!
प्रीति
365:10-
आओ साथ बैठ के दो चार बाते करते है
कुछ तुम मेरी गलतियाँ बताना कुछ हम
तुम्हारी गिनाते है
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उन शब्दों को उकेरने की
जो जेहन की सिलवटों में
एक उम्र से भटक रहे हैं
वो जो जुबां तक आते आते रह गये थे
वो जो रोजमर्रा की दौड़ में
दरकिनार कर दिये जाते हैं
वो जो तब हमारे पास आते हैं
जब कोई पास नहीं होता
मन की खिड़कियों से झांकते हुए
उस विचार रूपी चाभी की तलाश में
जो मन के दरवाजे खोल देगा
और उन शब्दों को एक माध्यम देगा
कभी वाणी, कभी कलम का
कब आयेगा वो विचार (🔑)
अब तो बस उसी का इंतजार है-
आओ साथ बैठ के दो चार बाते करते है
कुछ तुम मेरी गलतियाँ बताना कुछ हम
तुम्हारी गिनाते है
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वो कहा करती थी ,
मज़हब कभी बीच नहीं आएगा हमारे !
( पूरा लेखन अनुशीर्षक में पढ़ें 👇 । )
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कविता से ही कवि बना हूं ।
कविता में ही विलय होगा।
राग नहीं छीनी है किसी की।
मेरा खुद का लय होगा।
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चाहता हूँ कि मेरे लेखनी की तुम धार बन जाओ।
मैं पैन कार्ड तो हूँ ही, तुम बस आधार बन जाओ।
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