लोग क्या नहीं कर गुजरते,
अपनी आन के लिए
यहां सीढ़ी ने खुद को फ़ना किया, पायेदान के लिए-
ईशावास्यमिदं सर्वम
गुलिस्तां को गुलदस्तों में भरने की चाहत रखी
बागीचे की खुशबू में भी इत्र ने बादशाहत रखी
लिखने की चाहत में उंगलियां स्याह कर डाली
उस एक महल ने कई झोपड़ियां तबाह कर डाली-
जिस को ठेका दिया उसी के सर ठीकरा फोड़ा है
अपनी उदासीनता से हमने गणतंत्र से मुख मोड़ा है
किसी ने लहू बहाकार देश को एक साथ जोड़ा है
किसी ने खून चूसकर कहीं का नहीं छोड़ा है
हमीं ने नेता बनाए हैं हम ही इन्हें ताज पहनाते हैं
फिर क्यों हम खुद के फैसलों पर स्तब्ध रह जाते हैं
मांगी हुई आजादी और उधार का संविधान काफी है क्या?
फिर से सुभाष, पटेल, भीम का जन्म लेना बाकी है क्या?
जब से गण ने तंत्र को लावारिश सा छोड़ दिया है
तब से कुछ ने इसे बपौती से जोड़ दिया है
देश के विकास की राह में खड्डे बन गये हैं
कार्यालय ही मक्कारी के अड्डे बन गये हैं
कोई मंत्र लिखो, कोई पढ़ो, कोई संविदा लेकर आओ
आजादी के अमृत यज्ञ में इस उदासीनता को जलाओ-
साल बदल गये, पर हाल नहीं बदले
कम्बख्त इस बार भी, सवाल नहीं बदले
हाथ कुछ ना आया, मलाल नहीं बदले
शिकारी बदल गये, पर जाल नहीं बदले
तलवारें बदल दी हैं, ढाल नहीं बदले
कमर कस ली है, ख़याल नहीं बदले
#AProudUnreserved-
रक्त का हर कण समर्पित
श्वास अर्पित प्राण अर्पित
ज्ञान अर्पित मान अर्पित
असमयिक अनुदान अर्पित
देशहित में यदि जरुरत
पड़े निज अभिमान अर्पित
चाहता हूं देश की धरती
तुझे कुछ और भी दूं-
मिट्टी से हर रोज बनाता एक खजाना
सीपी और समंदर का है काम पुराना
तट पर बहती रेत मेरा हमसाया बनकर
तुम अपने हिस्से के मोती लेकर जाना-
आन हिमालय, मान हिमालय, मेरा तो हर गान हिमालय
शहरों में रहता शरीर पर, श्वास रुधिर और प्राण हिमालय
है असाध्य दुष्कर यह जीवन, प्रतिपल बाधाओं में अनगिन
लेता धैर्य परीक्षा हर दिन, देता जीवन ज्ञान हिमालय
ऊंचे ऊंचे हिम शिखरों में, आदि योगी आशीष बांटते
रखते सबका ध्यान बराबर, नहीं किसी को अलग छांटते
युगश्रष्टा, युगद्रष्टा रमते, प्रकृति का वरदान हिमालय
मेरी चौखट मेरा आंगन, मेरे घर की शान हिमालय-
हर दूसरे ने राय दी हर तीसरे ने सलीका
मैं पहला करता रहा जो भी गलतियों से सीखा-