'तारीफ़ लिखने बैठा था उसके,
'ख़ूबसूरती की,
'कलम ही रुक गयी उसका,
'मुस्कुराता हुआ चेहरा देखकर..!-
भूल हुई!
यहां मैं इश्क करने नहीं आया हूं ,
यहां मैं जज़्बात लिखने आया हूं।-
लिखने का शौक
वैसे तो कुछ खास था नहीं हमें
पर मर्ज़ का इलाज़ ढूंढते ढूंढते
खुद हकीम बन गए...-
लिखने का हुनर रखता हूं
तेरी आंखें भी पढ़ लूंगा
तू पलकें तो उठा तेरी बिन
कही बातें भी समझ लूंगा-
मर-मर के उनके इश्क़ में हम इस क़दर जीते हैं
इश्क़ में टूटे हुए दिल को गम के धागों से सींते हैं
अब तक बहुत पैसा बर्बाद किया इंग्लिश पीने में
अब तो अपने गांव के ठेके से देसी ठर्रा पीते हैं-
देख तुझे आज मैं अपना गर्व भूल गया
दुनिया देखी बहुत पर आज मैं सब भूल गया
कभी लिखने की कला होया करे थी
पर मैं आज वो सब सर शायरी भूल गया।-
लिखने वाले तन्हाई में ही दर्द लिखते है,
हसीं पलों में फुर्सत कहां है लिखने की।-
लिखने से
मुझमें
बदला
कुछ
नहीं है
पर
काफी
हद तक
सुलझ
गया है...
वैसे
बात
एक ही
है ना!!!-
लिखने बैठी थी आज मैं ये कागज़ कोरा लेकर
शमा से उजाला और दिल में आंधेरा लेकर
सोचा तेरे लिए लिखुं या तुझे लिखुं
कशमकश में बीत गई रात
पता ही नहीं चला कब सूरज आ गया सवेरा लेकर-