तेरी दोस्ती को मैं ज़िंदगी की जान मानता हूँ
लबों की मुस्कुराहट दिल का अरमान मानता हूँ
खुदा के बनाये रिश्ता बहुत अनमोल हैं लेकिन
इस दोस्ती को ही मैं अपनी पहचान मानता हूँ
अब अपनी ख़ुशनसीबी का सुरूर सा रहता है
हर मुश्क़िल अपने सफ़र की आसान मानता हूँ
अब तो यही दुआ रहती है लब पर तेरे लिए
रब से तेरी खुशियों का सब सामान माँगता हूँ
तुझे जिस लम्हें दिल मेरे दिल तक मोड़ दिया
मैं उस लम्हे का हर वक़्त एहसान मानता हूँ
समझ जाये बातें मेरी तू लब खोलने से पहले
और मेरे साथ गुनगुनाये वो ज़बान मानता हूँ
सुमित बहुत कुछ सीखा दिया मुस्कान ने मुझे
मैं इनको हर पल हर लम्हा भगवान मानता हूँ
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