-:लघु कथा:-
उस दम्पत्ति के दो बेटे थे,
अब शहर में उनके अपने-अपने तीन मकान हैँ......-
पकड़
मृत्यु शैया पर लेटी अम्मा की सांसें अपने पुत्र सुरेश के लिए अटकी हुई थीं। रह रह कर सुरेश आया... सुरेश आया... बुदबुदाती और सो जातीं। सभी इकट्ठे हो चुके थे। सुरेश की प्रतीक्षा थी। सुरेश ने बरसों पहले घर अलग कर लिया था। अम्मा की किसी बात से उसकी पत्नी आहत हो गई थी।
बड़े दामाद ने सुरेश के घर फोन लगाया था। सुरेश की पत्नी ने फोन उठाया था। उसके तीस साल पुराने ज़ख़्म अचानक हरे हो गए। उसने साफ कह दिया, 'हमें कोई मतलब नहीं, प्लीज डोंट डिस्टर्ब। आइंदा फोन मत कीजिएगा ।'
दस घण्टे से ज्यादा हो गए थे, सुरेश नहीं पहुंचा। मौके की नज़ाकत देखकर दामाद ने मोहल्ले के एक अजनबी को अम्मा के सामने खड़ा कर दिया और कहा, 'अम्मा, देखिए, सुरेश आ गया।'
अम्मा ने अचेतावस्था में सुरेश की कलाई पकड़ ली और बुदबुदाने लगी,
'सुरेश, तू आ गया...तू आ गया।'
कलाई का स्पर्श होते ही अम्मा की पकड़ ढीली हो गई
और उनकी अंतिम सांस निकल गई।-
आज गाँव के चौराहे पर एक अलग ही हलचल थी। जनता के चेहरे पर ख़ुशी और आँखों में इंतज़ार एक साथ देखा जा सकता था। ख़ुशी इस बात की कि आख़िरकार इतने दिनों के इंतज़ार के बाद उनके घरों में चूल्हा जलने वाला था और इंतज़ार था नेता जी का जो आज अपने हाथों से उन्हें राशन देने वाले थे। छोटे-बड़े सभी नेता जी को देखने के लिए उत्साहित थे।
अंततः गाँव की कच्ची सड़क पर दो सफेद चमचमाती हुई गाड़ियों का आगमन हुआ। पहली गाड़ी में नेता जी और उनके दो सहयोगी थे और दूसरी गाड़ी में कैमरा और माइक संभाले मीडिया वाले। गाड़ी रुकी, नेता जी बाहर निकले और उनके पीछे दो लोग हाथों में बड़े-बड़े 'कैरीबैग्स' लेकर आगे बढ़े।
नेताजी आये और राशन के वितरण का कार्य प्रारंभ हुआ। ग्रामीण पंक्तिबद्ध खड़े हुए। मीडिया वालों ने अपनी 'पोजीशन' ली। लोग एक-एक करके आ रहे थे और नेताजी उन्हें उनकी ज़रूरत का समान दे रहे थे। कैमरामैन तस्वीरें ले रहा था। तभी एक वृद्धा आयी। उसके चेहरे की शिकन बता रही थी कि उम्र के चौथे चरण को छू चुकी थी वो। नेताजी के सामने आकर उसने भी हाथ आगे बढ़ाया और बाकियों की तरह उसे भी राशन की बोरी देते हुए नेताजी ने कैमरे की ओर देखा। राशन लेकर वो जाने ही वाली थी कि कैमरामैन ने आवाज़ दी-"सर, तस्वीर साफ नहीं आ पाई।" बस फिर क्या था नेताजी ने झट से उस वृद्धा के हाथ से राशन लिया और दोबारा राशन देते हुए कैमरे की ओर देखा। इस बार तस्वीर साफ आई थी।-
क्या सच मे 'प्रेम' है ये , या फिर कोई गुमान
दिल ढूढ़ता रहा तुझे , 'राहत' के हर सामान-
दुनिया की सबसे छोटी रामायण
वाल्मीकि के संस्कृत रामायण और तुलसीदास के अवधी रामचरितमानस के बाद श्री तुलसी प्रसाद ने भोजपुरी में रामकथा लिखने की सोची। लिख लेने के पश्चात प्रूफ रीडिंग के लिए एक मित्र को भेजी। बदकिस्मती से वे लघुकथा विधा के प्रकांड थे और एक पत्रिका के सम्पादक भी। इतनी लंबी रचना देखते ही भड़क गए।
तुलसी प्रसाद ने हार नहीं मानी। कुछ पृष्ठ हटा दिए। लघुकथाकार को तसल्ली न हुई। उन्होंने कहा,'सात कांड में राम कथा लिखने की क्या आवश्यकता? बचपन की घटनाओं का वर्णन करने की भी कोई आवश्यकता नहीं। मुख्य बात है कि राम ने जन्म लिया'
राम के वन जाने पर स्पष्ट है कि जो भाई पीछे रह गए वे राज काज संभालेंगे ही इसलिए भरत और शत्रुघ्न का प्रसंग रखने की आवश्यकता नहीं। मुख्य बात है कि राम वन गए।
फिर वन में कई राक्षसों का वध करते और वानर भालू को मित्र बनाते लंका पहुंचे। क्यों पहुंचे? स्पष्ट है रावण को मारने।
इस तरह काट छांट कर अंततः तुलसी प्रसाद की रामायण को उन्होंने लघुकथा की शक्ल देने में कामयाबी हासिल की।
तुलसी प्रसाद की पुस्तक छपने की अभिलाषा तो पूरी नहीं हुई परंतु उनकी लघुकथा विश्व की सबसे छोटी रामायण के रूप में अवश्य प्रतिष्ठित हो गई जो इस प्रकार है:
राम जनमलें, वने गइलें
रवणा के मरलें, घरे अइलें
अर्थात
राम ने जन्म लिया, वन गए
रावण को मारे, घर आए-
बिज़ली नहीं आयी
उन दिनों बिज़ली जाना कोई नयी बात नहीं थी इसलिए हम सभी ने भी अपना खेल चालू रखा। काफी देर हो चुकी थी पर बिज़ली आने का नाम नहीं ले रही थी। हम बारी बारी से गाने गाये जा रहे थे कि अचानक रसोईघर से अजीब सी आवाज़ सुनाई दी।
वही आवाज लगातार आती रही....
Read full story in caption-
एक लधुकथा..
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दुविधा
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सुनो शादी करोगी मुझसे "
शादी ?? तुमसे ?? शक्ल देखी है अपनी ??
और दोनों हंस पड़ते हैं ..!
हंसते समय मुंह में बचे आधे तिहे दांत दिखलाई पड़ जाते हैं.....😁😁
( आगे की कहानी कैप्शन में पढ़े )-
शहर से समाचार आया,
"मुबारक हो, आपका राजू दौड़ में प्रथम आया है।"
अपाहिज माँ-बाप की बैसाखियाँ भी खुशी से नाचने लगीं ।।
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