वफा की उम्मीद,
और तुमसे,
ख्वाबों में भी ना करे....
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जाने क्यूँ तरबतर हैं आँखे उनकी,
अभीतक नज़रभर देखा भी नहीं!
वो ताकती रहती चाँद को रातभर,
आँखों मे अक्स दिखाती भी नहीं!
पलट के देखती है गुजरते पास से,
वक़्त-ए-रूबरु पहचानती भी नहीं!
अब भी मैं नजरअंदाज हूँ ज़ालिम,
उस के दर से अभी उठा भी नहीं!
मुझे खोने का डर है उसके दिल मे,
जाहिर तौर से मेरी परवाह भी नहीं!
मेरे जाने से वो ख़फ़ा तो होगी बेशक,
पर वो रास्ता मेरा रोकती भी नहीं!
इल्म है मुझको, बेसब्र है वो मेरे लिए
"राज" को उसके बिना जीना भी नहीं! _राज सोनी-
करनी है तुमसे गुफ़्तगू ।
या मिला दो मुझे उस शक्श से,
जो मिलता हो तुमसे हूबहू ।।
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बहुत ही जरूरी सा लग रहा, कुछ तो जरूर बाकी है
प्यार खत्म नहीं हुआ ,अभी तो मिठी तकरार बाकी है
कहाँ चल दिये छोड़कर, मेरे दिल की हसरते बाकी है
बैठो हमारे रूबरू, बहुत सारी प्यार भरी बातें बाकी है
साथ हो तुम्हारा, इन प्यारे लम्हों की एहसास बाकी है
भींगना भी है साथ, अभी सावन की फुहहार बाकी है
नादानियां खत्म नहीं हुई,अभी तो पूरी जिंदगी बाकी है
ये आँखें इंतजार कर रहा,बस अभी तेरा आना बाकी है
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धड़कने धड़क जायें,
तुम जो साथ हो🤝
हम भी थोड़ा बहक जायें...💕
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क्यों दूर - दूर क्यूं रहते हो।
आंखो से बातें है करनी हमें,
देखना है कि क्या तब भी झूठ कहते हो।।-
करनी है तुमसे कुछ गुफ्तगू,
तुम कुछ अपना हाल बताना,
कुछ तुम मेरी आरज़ू सुनना,
कुछ तुम मनाना मुझे,
कुछ मैं सताऊंगी तुम्हे।
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सुनाना है अल्फ़ाज़ अपनी, रूबरू तुमसे होना है
पास बैठो तुम आकर, गुफ्तगू की बातें करना है
कुछ किस्सा तुम कहना, कुछ किस्सा हम कहेंगे
जब चलेंगे साथ दोनों, एक दूसरे को देखा करेंगे
खत्म हुआ इंतज़ार तुम्हारा, वो पल लौट आया है
वक़्त के कगार पर, संदेह तुम्हारा अब आया है
बेसब्री सा इंतजार था, आहट मेरा जो बेशुमार था
कितने दिन गुजारे थे मैंने, जो साथ वाला प्यार था
उम्मीद का चिराग जल गया अब, जो तुम आ गए
दिल बहल सा गया मेरा, जो रूबरू तुमको पा गए
सुनाना है अल्फ़ाज़ अपनी, रूबरू तुमसे होना है
पास बैठो तुम आकर, गुफ्तगू की बातें करना है-