रूह जिस्म से रुख़सत हो गयी
राहत 'था' अब रहमत हो गयी-
_राहत_
तू हमारा ना हुआ
अब ये गम नही...
बस दर्द-ए-दिल से
राहत की आरज़ू है-
रुबरु हुए किसको खबर थी चाहत की
ये तुम्हारी आँखे हैं या है दवा राहत की-
राहत......,
मिल जाएगी मेरे दिल को, अब जो तू वापस आ जाए..,
वरना ये दिल, कहीं फिर से, बंजर न बन जाए......।।-
हाथों की नरमाहट से तुम राहत देती रही।
साँसों की गरमाहट से मुझे मोहब्बत देती रही।।
हर मर्तबा बगीचे में नए गुल खिले रहते हैं।
कुछ इस तरह किश्तों में मुझे चाहत देती रही।।-
जितने अपने थे सब पराये थे ,
हम हवा को गले लगाते थे ।
जितनी कसमे थी सब थी शर्मिदा ,
जितने वादे थे सर झुकाएं थे ।
सिर्फ दो घूँट प्यास के ख़ातिर ,
हम उम्र भर धूप में नहाए थे ।।
राहत इंदौरी ।-
"आँसू "
कभी खुशी की फुहार बन आँखों से छलकते हैं,
तो कभी गम को अपने में समाहित कर मचलते हैं .....
कभी बेबसी और लाचारी बन
आँखों में समा जाते हैं आँसू ,
तो कभी राहतों की सौगात स्वरूप
रिमझिम से टपकते हैं .....
कभी पिता की फटकार में,माँ के दुलार में
नैनों को गले लगाते हैं आँसू ,
तो कभी गैरों के दर्द में भी
मोम बन पिघलते हैं .....
कभी देशभक्ति के नाम पर
पलके भिगो देते हैं आँसू ,
तो कभी शहीदों की शहादत पर
अभिमान बन बरसते हैं .....
शेष अनुशीर्षक में पढ़ें ....निशि 💖
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चाहते नकारी हैं
राहते भी हारी है
एक तुझे देखने को हमने जन्नतें भी वारी हैं-