राम से पूजित भी है वह
उस राम से अनुरक्त भी
इस व्योम सा वह शून्य है
शिवलिंग सा है वह व्यक्त भी-
Unmukh hai udar hai Rudra hai wo,
Nirakar h bhakto ke dil me rahte wo,
Shakti Punj ke data, Bhole nath h wo.-
मन मुरलीधर का दास हो और
द्वारका का धाम हो।
मन में जटाधर का वास हो और
रामेश्वरम का धाम हो।
मन वंशीधर का दास हो और
पुरी का धाम हो।
मन में अर्धनारीश्वर का वास हो और
बद्रीनाथ का धाम हो।
साथ में माता-पिता हो और
कुछ इस तरह चार धाम की तीर्थयात्रा हो।
#aaj hath mein kalam hai🥀
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"Pilgrimage sites of India attract falling stars, like broken pieces from sky!"
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कभी मैं समझ जाता संकेत, कभी कभी सोचते रहता, उनके इशारों को देखकर।
कभी कभी मुझे आश्चर्य भी होता, टूटकर नीचे जो गिरते थे उन तारों को देखकर।
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टिमटिमाते हुए भी वो काफी कुछ बता जाते थे, और यही उनका संकेत होता था।
वो रात भर चाँद का साथ देते थे, उन्हें भी खुशी थी, धरती के नज़ारों को देखकर।
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उन्हें पता था जिस धरती पर भगवान जन्म लिये हैं; वहाँ उतरना ही धन्य होना है।
इसलिए गिरना चाहते थे, भारत के अयोध्या, मथुरा, काशी में बहारों को देखकर।
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बेशक यही वजह रही होगी जो चाँदनी रात में तारे गिरते भी नज़र आया करते थे।
उनका मन मचलता था; हरिद्वार, ऋषिकेश, द्वारिकापुरी में त्योहारों को देखकर।
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बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी के संग तिरूमाला की पहाड़ियाँ भी आकर्षित करती इन्हें।
कभी तिरूवनंतपुरम ध्यान खींचती; भगवान का भक्तों पर उपकारों को देखकर।
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केदारनाथ व रामेश्वरम भी कम न थे; तारों का ध्यान खींचने में कसर न छोड़ने में।
इसलिए ये बरसात के बीतने के बाद तत्पर व बेताब थे लंबे इंतज़ारों को देखकर।-
हे रघुनंदन तुम कब आओगे !
सबरी राह ताक रही मीठे बेर तलाश रही !
व्यर्थ ही जीवन की सब आस रही !
नहीं भूख नही प्यास रही !
हे रघुनंदन तुम कब आओगे !
सबरी राह ताक रही मीठे बेर तलाश रही !
एक-एक दिन एक-एक रात जाने कैसे काट रही !
हे रघुनंदन तुम कब आओगे !
सबरी राह ताक रही मीठे बेर तलाश रही !
दिन-दिन हर रात-पहर जाग रही !
व्यर्थ ही जीवन की सब आस रही !
नही भूख नहीं प्यास रही !
हे रघुनंदन तुम कब आओगे !
सबरी राह ताक रही मीठे बेर तलाश रही !!
~~ रामेश्वरम-
राम और रामेश्वर की,
भक्ति है महान।
रामानंद रसपान को,
महादेव बने हनुमान।-