तुमने हमारी ज़िंदगी के कुछ पन्ने कब लिख दिए पता ही ना लगा। कब तुमने उन पन्नो पर हमारे सपने की सेज सजा दी पता ही ना लगा। हर चाह मुक्कमल हो जरूरी तो नही। मगर तुमने मेरे अरमानों का गुलिस्तां यूँ सजाया। जैसे रुबरू हुए हम ज़िन्दगी की हर खुशी से। आज भी वो पल ज़ेहन में खुश्बू बन हमारी ज़िंदगी मे ऐसे घुल गए जैसे दिल के साथ धड़कन समुन्दर के संग लहरे। सीप के संग मोती।
जब सब कुछ टूट कर बिखर गया जब अपने पराये हो गए और पराये अपने हर सपना टूट कर मोतियों के भाव बिक गया हर उम्मीद का बहिष्कार कर दिया गया हर खुशी को आंसुओं में बदल दिया गया तो अब क्या है?