Anu Raj   (Anu Raj)
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Joined 8 September 2018


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Joined 8 September 2018
9 APR AT 8:17

चहके चिड़िया हो मुदित, कोयल छेड़े तान ।
करते हँसकर फूल भी,   प्रातः का सम्मान ।।
प्रातः का सम्मान,     करे लहराकर सागर ।
नर्म गुलाबी धूप,    सुनहरे लिखती अक्षर ।।
छिटके जब अरुणाभ, प्रकृति का कण-कण महके ।
मौजें भरे समुद्र, मुदित हो चिड़िया चहके ।।

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8 APR AT 14:05

गुलसिताँ में खिली रात रानी
खिल उठी है मेरी बागवानी //१

रंग कितने हैं याँ इस जमीं के
है मगर आसमां आसमानी //२

आँखें मेरी फटी रह गयी जब
गुलसिताँ में हुई गुल फ़िशानी //३

ध्यान रखना न हो वक्त जाया
चार दिन की है ये ज़िंदगानी //४

बालपन में सुनी जो कथाएँ
याद है वो मुझे मुँह ज़ुबानी //५

जान सरहद पे अपनी लुटाकर
छोड़ जाते हैं दिल में निशानी //६

आँसुओं से सराबोर आँखें
सोज ए दिल की यही है कहानी //७

ज़िंदगी हँस के जीती हूँ मैं तो
है मेरे रब की ये महरबानी //८

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8 APR AT 12:30

अंतर्मन को आत्मा, देती जब झकझोर ।
करता है तब मौन भी,  अंतर्मन में शोर ।।

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8 APR AT 12:21

फूलों ने हँसकर कही, कलियों से यह बात ।
मिला हमें परमार्थ हित, यह जीवन सौग़ात ।।

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7 APR AT 6:51

कोकिल छेड़े रागिनी, खग चहकें चहुँ ओर ।
देख भोर की लालिमा, कण-कण हुआ विभोर ।।

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13 FEB AT 17:38

आज है अपना ठिकाना क्या पता कल हो न हो
ये बदन का आशियाना क्या पता कल हो न हो //

व्यर्थ करते नाज़ हम मिट्टी के तन के तेज़ पर
चलती साँसों का खज़ाना क्या पता कल हो न हो //

मोल लें मत बैर गैरों को पराया जानकर
आज है अपनों का शाना क्या पता कल हो न हो //

सीख लें चलना मुसीबत में अकेले धैर्य से
साथ अपने ये ज़माना क्या पता कल हो न हो //

रोज थोड़ा मुस्कुराती हूँ यही मैं सोचकर
मुस्कुराने का बहाना क्या पता कल हो न हो //

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8 FEB AT 12:55

नए दर्द बेसाख़्ता दे रही है
तेरी याद मुझको सज़ा दे रही है //१

मैं चाहूँ भुलाना तेरी याद को पर
मुझे बारहा वो सदा दे रही है //२

पुराने सभी जख्म ताजे अभी हैं
तेरी याद ज़ख्म इक नया दे रही है //३

तेरी याद करती रही बेवफ़ाई 
वफ़ा का मगर वास्ता दे रही है //४

छुपाया बमुश्किल है अश्कों को मैंने
मगर आह ग़म का पता दे रही है //५

तेरी याद सच में है ज़ालिम बहुत ही
सज़ा ये मुझे बारहा दे रही है //६

मुई याद से मैं तो पूछूँगी एक दिन
कि मांगा था क्या और क्या दे रही है //७

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7 FEB AT 21:44

अपना रुआब ख़ुद ही बढ़ातीं हैं रोटियाँ 
सबके नसीब में कहाँ आतीं हैं रोटियाँ 

कोई है घर से दूर कोई तोड़ता शिला
दिन कैसे-कैसे सबको दिखातीं हैं रोटियाँ 

निर्धन हो या हो कोई शहंशाह, बादशाह
सबके उदर की भूख मिटातीं हैं रोटियाँ 

मुफ़लिस समझते पर्व से कमतर नहीं कभी
हिस्से में उनके जब कभी आ जातीं रोटियाँ 

लगतीं हैं बेशकीमती दौलत से भी अधिक
जब-जब क्षुधा की आग बुझातीं हैं रोटियाँ

खुशियों के साथ देतीं हैं मजबूरियाँ भी जब
अपनों से दूर शह्र बुलातीं हैं रोटियाँ

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7 FEB AT 17:33

तोहफ़ा लाज़वाब आया है
ख़त में भर कर गुलाब आया है
अश्क़ आँखों में हैं खुशी के और
सुर्ख़ रुख़ पर रुआब आया है

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7 FEB AT 17:24

टूटे पर फिर भी दिए, सदा प्रेम संदेश ।
फूलों से मिलता हमें, जीवन का उपदेश ।।

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