मैंने पापा को भी रोते देखा है ......
मैंने वक्त की तस्वीर को बदलते देखा है ,
नन्हें कदमों को हाथों से संभलते देखा है ,
बेचैन आँखों को झूठी नींदों में सोते देखा है ,
हाँ मैंने पापा को भी रोते देखा है ......
मैंने हौंसलों को धीरे - धीरे पस्त होते देखा है ,
गलतियों में आवाज को सख्त होते देखा है ,
बेरुखी में भी आँखों से प्यार बरसते देखा है ,
दूर देखकर मुझे हर बार तरसते देखा है ,......
हाँ मैंने पापा को भी रोते देखा है .......-
मैंने देखा है
'प्रेम' में
'निवाला' तोड़ते हुवे
'प्रेमी' को
'प्रेमिका' के लिए
कैसा होता अगर
'प्रस्तुति' का ये भाव
'प्रस्तुत' होता
'उत्पत्ति' के
'माध्यम' को
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मैंने बड़े करीब से खुद को टूटते देखा है
हर बार टूट कर खुद को संभलते देखा है।
मैं भूली तो नहीं उसे और उसके यादों को आज तक
मैंने हर रात उसके यादों से खुद को मिलते देखा है।
ये बरसों के बनाए रिश्ते बड़े अजनबी से लगते हैं
मैंने बरसों के बनाए रिश्ते को पल भर में टूटते देखा है।
बेशक वह भूल गया हो मूझे मेरी यादों की तरह
मगर मैंने आज भी उसके यादों में खुद को तड़पते देखा है।-
मैंने जब जब सर झुकाया अपना तेरे दर पे,
तब तब खुद को और भी मज़बूत ही पाया,
मेरी माँ.....-
मैंने ख़ुद को गिरा के कई बार उठाया है तुम्हे..!
और तुमने तो गिरा हुआ ही समझ लिया हमें..!!
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बच्ची क्या केह दीया
की मैंने तुम्हें बच्ची
क्या केह दीया ,
तू तो अपनी बचपना
ही दिखा दी !
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तुम समझते नहीं
अब मुझे
जाने क्या दूरियाँ
हो गई तुमसे ही
ऐसा होता है
इसलिए हो रहा है
या किया है ये
हमने ही ?
हमने ही किया
होगा शायद
क्योंकि मुक्कमल भी तो है
आज बहुत से ही
और तुमने क्यों यार
मैंने ही किया होगा
क्योंकि गलती तो तुम्हारी
कभी होती ही नहीं ।-