चल मुसाफ़िर यह अंत नहीं है
चंद ख़्वाब टूटे... तुझे हरा नहीं सकते,
माना मुठ्ठी में जल टिकता नहीं है
पऱ यूँ नहीं है के हम एक भी बूँद... बचा नहीं सकते,
बोझ कंधों पे यह ग़मों का... इतना भी अधिक नहीं है
सारे पंछी एक पेड़ पऱ बैठकर... उसे चाहें भी तो गिरा नहीं सकते,
औऱ... पल भर की है यह अश्रुओं की बारिश
सारे मेघ इकठ्ठे होकर भी.. सूर्य को चाहकर भी दवा नहीं सकते,
यूँ ही व्यर्थ है... तू चिंतित प्राणी
सारे जुगनू मिलकर भी... अंधेरों को मिटा नहीं सकते,
सुन.. जी ना, ...है ज़िन्दगी बहुत ही खूबसूरत
यह सारे तारे एकत्रित होकर भी.. एक चाँद बना नहीं सकते,
चल मुसाफ़िर... यह अंत नहीं है
चंद ख़्वाब टूटे तुझे हरा नहीं सकते!!
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