YourQuote Didi   (YQ Hindi)
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Much awaited iOS Update! Please update.
Joined 1 February 2017


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4 HOURS AGO

देख लेते हो मोहब्बत से यही काफ़ी है
दिल धड़कता है सुहूलत से यही काफ़ी है

मुद्दतों से नहीं देखा तिरा जल्वा लेकिन
याद आ जाते हो शिद्दत से यही काफ़ी है

जो भी रस्ते में गुज़रता है मिरे पहलू से
देखता है तिरी निस्बत से यही काफ़ी है

मेरे आँगन में उतरता नहीं वो चाँद कभी
देख लेते हैं उसे छत से यही काफ़ी है

सारी दुनिया से उलझते हैं मगर तेरा कहा
मान लेते हैं शराफ़त से यही काफ़ी है

हाल दुनिया के सताए हुए कुछ लोगों का
पूछ लेते हो शरारत से यही काफ़ी है

'बद्र मुनीर'

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7 HOURS AGO

कभी मिल गए हम

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9 HOURS AGO

कशिश 4 पंक्तियों में

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14 HOURS AGO

अचानक कुछ नहीं होता

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16 HOURS AGO

करुण रस कविता

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21 HOURS AGO

सत्य की खोज में

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YESTERDAY AT 0:16

"शब्द और सत्य"

यह नहीं कि मैंने सत्य नहीं पाया था
यह नहीं कि मुझको शब्द अचानक कभी-कभी मिलता है :
दोनों जब-तब सम्मुख आते ही रहते हैं।
प्रश्न यही रहता है :
दोनों जो अपने बीच एक दीवार बनाए रहते हैं
मैं कब, कैसे, उनके अनदेखे
उसमें सेंध लगा दूँ
या भरकर विस्फोटक
उसे उड़ा दूँ?
कवि जो होंगे हों, जो कुछ करते हैं करें,
प्रयोजन मेरा बस इतना है :
ये दोनों जो
सदा एक-दूसरे से तनकर रहते हैं,
कब, कैसे, किस आलोक-स्फुरण में
इन्हें मिला दूँ—
दोनों जो हैं बंधु, सखा, चिर सहचर मेरे।

'अज्ञेय'

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15 SEP AT 21:00

साथ चलो कुछ दूर

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15 SEP AT 19:00

चाँद 1 पंक्ति में

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15 SEP AT 16:00

लेखक का मन उत्तर नहीं ढूँढता, प्रश्न खड़ा करता है। वही प्रश्न जो समाज दबा देता है, लेखक उन्हें उजागर करता है। लेखन आत्मा की उस बेचैनी का विस्तार है, जो हर चीज़ में अर्थ खोजना चाहती है।

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