हम भी देखते हैं
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डॉक्टर्स डे केवल धन्यवाद का दिन नहीं, यह श्रद्धा और कृतज्ञता का अवसर है। जब जीवन डगमगाता है, तब डॉक्टर न केवल इलाज करते हैं, बल्कि विश्वास भी देते हैं। उनके ज्ञान, धैर्य और मानवीय संवेदना से ही जीवन की डोर बंधी रहती है। हर नब्ज़ में वो सिर्फ़ धड़कन नहीं, उम्मीद भी तलाशते हैं। समाज के इन मौन प्रहरियों को नमन।
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"नीला रंग"
अगर कभी मैं खोज पाया नीला रंग
तो वह आसमानी छतों और सागर की
दरियों में नहीं होगा
होगा वह क़लम से लहूलुहान काग़ज़
की रेखाओं में
अगर यह भी न हुआ,
मैं खोज निकालूँगा उसे अंतरात्मा की
परछाइयों में।
मैंने नील से कपड़े धोती
माँ के हाथों में नीला रंग देखा है।
मैंने देखी है नीली पतंगे, नीले पहाड़,
नीले जंगल,
और नीला कमल, नीला रक्त भी।
काश! यही नीला रंग होता मेरी
ज़िंदगी का।
'अंकुर मिश्र'-
मेरा उसका परिचय इतना
वो नदिया है, मैं मरुथल हूँ।
उसकी सीमा सागर तक है
मेरा कोई छोर नहीं है।
मेरी प्यास चुरा ले जाए
ऐसा कोई चोर नहीं है।
मेरा उसका इतना नाता
वो ख़ुशबू है, मैं संदल हूँ।
उस पर तैरें दीप शिखाएँ
सूनी सूनी मेरी राहें।
उसके तट पर भीड़ लगी है
कौन करेगा मुझसे बातें।
मेरा उसका अंतर इतना
वो बस्ती है, मैं जंगल हूँ।
उसमें एक निरन्तरता है
मैं तो स्थिर हूँ जनम जनम से।
वो है साथ साथ ऋतुओं के
मेरा क्या रिश्ता मौसम से।
मेरा उसका जीवन इतना
वो इक युग है मैं इक पल हूँ।
'अंसार कम्बरी'-