बेख़ौफ ज़िंदगियों ने,वक्त का इस तरह ठहरना देखा,
ज़िद्दी बच्चों की आँखों में,समझदारी का परचम देखा।
हर जानिब ख़ामोशियां ही ख़ामोशियां है,
छुट्टी तो हर रोज़ है,पर सुकून को नदारद देखा।
है चाहत अपनी चौखट की,बच्चों के लिए दो निवालों की,
आज मुफलिसी ने,लाचारी का ये मंज़र भी देखा।
ख़ौफ़ज़दा होकर इंसान,मजबूर है हालातों से मगर,
बहुत से मकानों ने....घर सा बसेरा भी देखा।
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